Friday, October 17, 2025

हां मैं हूँ बहुत तन्हा

हां ! मैं हूँ बहुत तन्हा
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हां ! मैं हूँ बहुत तन्हा, 
मेरा बिस्तर तन्हा, 
उसकी हर इक सिलवट तन्हा , 
मैं -बिस्तर -सिलवट सब हैं साथ घुले मिले , 
क्यूँ मेरी तन्हाई नहीं घुल पाती है ?

मेरे घर की चारों दीवारें हैं साथ
 पूरी छत को सम्भाले ;
मगर चारों खड़ी हैं तन्हा !
बरसों से बन्द पड़ी खिड़कियाँ ;
खिड़कियों पर जंग खायी छिटकनियां , 
क्यूँ चुप पड़ी हैं तन्हा ?
क्यूँ नहीं खुल पाती हैं ?

हमारी रिश्तेदारी
 केवल अपनी अपनी तन्हाईयों से है !
हमारी शिकायत
 एक दूसरे के बीच की खाईयों से है !
शाम को चाँद आता है तन्हा ;
सुबह से पहले जाता है तन्हा !
पूरी तन्हाई टूट कर बिखर है जाती
 जब सुबह सुबह बुलबुल गाती है!

मैं कभी खुश नहीं रहा अपनी तन्हाईयों से ;
बिस्तर -सिलवट -खिड़की -छिटकनी-खाईयों से !

मैं एक भी आंसू नहीं गवांऊगा , 
मेरी तन्हाईयों के तमाशबीन
 केवल तुम रोओगे , 
जिस दिन मैं तुम्हें तन्हा कर जाऊँगा !

पूरी कायनात से टपकती रिसती
 सख्त सूखी तन्हाईयां , 
चिपक गई हैं मैल की मानिंद ;
क्यूँ नहीं धुल पाती हैं ?
जबकि मुझे भी रोज सुबह सुबह , 
गाती हुई बुलबुल भाती है !!
----------------- तनु थदानी

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