Friday, February 15, 2013

तनु थदानी की कवितायें -मूलतः ठग हैं हम tanu thadani ki kavitaayen - multah thag hain ham

अदभुत  शैली  के  ठग  हैं  हम ,
जो  सर्वप्रथम  स्वयं  को  ठगते  हैं !

योग्यता  के  बाजार   में  
खुद   को  बेच  कर   खुश  होना ,
गैर   जरुरी  मसौदों  को  
पूरे जीवन  सिर  पे   ढोना, 
किसी  जंगली  जानवर  के  लगभग  हैं  हम !
हम  जानते  हैं  कि  ठग   हैं  हम !!

अपने  बच्चों  के  समक्ष ,
चरित्रवान   होने  का  ढोंग  करते - करते
हम   ना  कभी  ऊबते   हैं  ,
ना  थकते   हैं ,
यूँ  ही  पीढ़ियों  से  
आदतन  ही  इक  दूसरे  को  ठगते  हैं !
जीवन  की  अंगूठी  में  ज्यों  नकली सा   नग  हैं  हम ! 
हम  खुश  हैं  कि  ठग  हैं  हम !!

रिश्तों   में  भी   लाभ- हानि   का  गणित  बैठाते  हैं ,
बूढ़े   होते माँ  - बाप की  उपयोगिता  पर  दिमाग   लगाते है ,
दिमाग  की  दिल  से  सांठ - गांठ को रोकते   हर  पग हैं  हम !
क्यों  कि  मूलतः  ठग  हैं  हम !!

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