Thursday, February 8, 2018

Tanu thadani तनु थदानी मैं तो दलदल में भी बहता हूँ

मैंने अपनी कई खामोश रातें
कुकर में पकाई हैं !
सीटियाँ बजती हैं,
मैं सीटियों को सहता हूँ ,
सब खुश रहें घर में
महज़ इस बात की खातिर,
मैं दूर कमाने को अकेला रहता हूँ !

अपने आँसुओं को पत्थर बनते देखना ,
यही तो दिनचर्या है ,
वज़नहीन साँसों को अंदर बाहर फेंकना,
यही तो दिनचर्या है !
तुम बेशक दिनचर्या कहो,
मैं तो दलदल कहता हूँ,
इसी दलदल में मेरी जिन्दगी कसमसाई है !
लोग फंसते हैं दलदल में,
मैं तो दलदल में भी बहता हूँ ,
दूर बहुत दूर खुद के साथ अकेला जो रहता हूँ !!

Saturday, December 30, 2017

धत् पगली तनु थदानी tanu thadani

धत् पगली

मेरी मुस्कान एक अलमीरा है बहुत बड़ी,
भीतर आँसू हैं मेरे,
कभी देखा है मुझे रोते हुए ??

पूरी गृहस्थी को अनवरत ढ़ोता खींचता जाता हूँ ;
छिल जाते हैं कंधे , हाँफता हूँ ,रुकता हूँ ,
फिर मुस्कुराता हूँ !
धोखे में न आना ,
ये तो खुशी से हैं मेरी आँखें भरी भरी !!

गले मिलना कभी आ के,
तुम भी मुस्कुराओगी ,
मेरे कंधे गीले कर ,
चुपचाप चली जाओगी ,
पर मुझे नहीं बताओगी !

अजीब हैं न हम ,
करते कुछ हैं,
दिखाते कुछ हैं ,
हँसते बनावटी जरूर हैं ,
मगर रोते सचमुच हैं !
धत् पगली ,तू क्यूँ रोती है ;
मैं हूँ न तेरे साथ, हर क्षण, हर घड़ी !!


Sunday, April 30, 2017

तू मेरा हाथ मत छोड़ना माँ !

तू मेरा हाथ मत छोड़ना माँ !
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जब भी घर को बचाने के लिये
उसे बाहों में भर लेता हूँ ,
मेरी ही छाया मेरे धैर्य को निगल
ध्वस्त्  कर देती है मुझे !

माँ , जब तू काँपती है अपने ही घर की कंपन में ,
तब शर्म  से मेरी आंखे झुकती हैं ,
असमर्थ हो जाता हूँ , सो मेरे कंधे भी झुकते हैं !

माँ , सच कहता हूँ ,
हार गया मैं अपनी छाया से !
न बैठा हूँ अब तलक , न ही सोया हूँ ,
मेरी पीठ दुखती है , मेरे पैर दुखते हैं !!

मेरे कमरे के कोने में दुबकी हँसी की गवाही ले लो ,
मैं सचमुच नहीं मिला वर्षों से उससे !

बचपन में तेरे लिये पूरा शहर खरीदने वाला मैं ,
एक कतरा मुस्कान न ला सका तेरे लिये ,
बड़े होने का दंश झेलता हूँ ,
तू मेरा हाथ मत छोड़ना माँ !
बह न जाऊं मैं ,
मेरे आंसू तो तेरे आंचल में ही रुकते हैं !!😢😢

Tuesday, March 21, 2017

ऐ कविता तनु थदानी tanu thadani

ऐ कविता ,
जिस दिन मैं रोया था पहली बार ,
बस तू ही थी जो रोयी थी मेरे साथ !
कहाँ से थी आयी ,नहीं मालूम ,
तू मिली तो मैं व्यक्त हुआ
तू मिली तो गौरेया के मायने समझ मेंं आये ,
मैं  सूख गया था आँसुओं में डूब कर ,
तू मिली तो तुकबंदियों ने अपने फटे पुराने कपड़े भी दिये,
ढ़क दिया नंगापन मेरा ,
तू मिली तो मैं खुद की घड़ी का वक्त हुआ !
आज मैं कविता दिवस पर  तुम्हें देता हूँ बधाई ,
मैं किस्मत वाला हूँ  जो तू मेरे हिस्से में आयी !
---------------------  तनु थदानी

Sunday, September 11, 2016

tanu thadani ki kavitaayen: tanu thadani तनु थदानी अरे कोई तो बताओ उसे

मेरी छाया का मुझसे था वादा ,
मेरे साथ साथ चलने का !
मेरी छाया को पूरा था हक ,
मेरे साथ साथ रहने का !

मेरे साथ  रहते रहते ,
घोल कर पी गयी घर की दिवारें ,
फिर बताया मुझे, जहां वो आती है नजर
उस फर्श को भी वो खायेगी !

यहाँ मसला उसकी भूख प्यास का नहीं ,
मसला है मुझको छलने का !
दिवार व फर्श हैं तो अस्तित्व है उसका ,
दिवार व फर्श होंगे ,तभी तो वो दिख पायेगी !

अरे , कोई तो बताओ  उसे ,
मैं रौशन हूँ तो वो है ,
मुझे अंधेरों में ढ़केल ,
वो खुद भी तो मर जायेगी !!

Wednesday, August 31, 2016

tanu thadani तनु थदानी देखो ना

अब मनाऊँ कैसे ?
रूठा भी
चला गया दूसरी दुनिया में !
बदल गया मैं
पर बदल नहीं पाया अपनी दुनिया !
रहना है इसी दुनिया में सूखी घास सा !!


रात को अंधेरों से रूठने मत देना ,
दिन में उजाले टूटने मत देना ,
बारिश हो तो भींगना ,
दौडना भागना ; मगर हाथ छूटने मत देना  !
बहुत कुछ छूट गया
जो छूट गया उसे बताऊँ कैसे ?
वो तो रच गया गले में इक प्यास सा !!


कल रात तूफान में उड़ गयी छत ,
घर नंगा हो गया ,
मैं कविताएँ लिखता रह गया जमीन पर ,
मेरे साथ हंसता - खेलता - लड़ता चेहरा
अचानक आसमान का हो गया !
मैं उस तक जाऊँ कैसे ?
देखो ना , मैं ही टूट गया एक विश्वास सा !!
------------------------तनु थदानी

Tuesday, July 12, 2016

तनु थदानी Tanu thadani चलो आज से हम ख़ामोश रहते हैं tanu thadani Ki kavitayen


मैंने अपनी आवाज निगल ली है ;
लोग उसे ख़ामोशी कहते हैं !


आप ढूंढो चुपचाप सी चुप्पी में
एक आवाज ;
आप चुन लो चुपचाप सी चुप्पी से
एक साज !


पूरी पूरी आवाज में
और पूरे पूरे साज में भी
नहीं सुन पाओगे एक भी शब्द !
शब्द आवाज में रहते ही नहीं बंधु ;
शब्द तो आंखों में रहते हैं ;
लोग जिसे ख़ामोशी कहते हैं !


जिसने भी अपनी आवाज उगल दी
वो फंस गया जंगल की रात में !
नहीं जी, मेरा दिल कोई भारत की संसद नहीं है ;
नहीं बनाने कोई कानून मुझे शोर शराबो में ,
न खुद के लिये
न दूसरों के लिये !
मैं सुकून से हूँ
अपनी ख़ामोशी की बात में !


शब्द जो आंखों में रहते हैं
वही तो आवाज बन पाते हैं !
चलो ; आज से हम ख़ामोश रहते हैं !!