Sunday, September 11, 2016

tanu thadani ki kavitaayen: tanu thadani तनु थदानी अरे कोई तो बताओ उसे

मेरी छाया का मुझसे था वादा ,
मेरे साथ साथ चलने का !
मेरी छाया को पूरा था हक ,
मेरे साथ साथ रहने का !

मेरे साथ  रहते रहते ,
घोल कर पी गयी घर की दिवारें ,
फिर बताया मुझे, जहां वो आती है नजर
उस फर्श को भी वो खायेगी !

यहाँ मसला उसकी भूख प्यास का नहीं ,
मसला है मुझको छलने का !
दिवार व फर्श हैं तो अस्तित्व है उसका ,
दिवार व फर्श होंगे ,तभी तो वो दिख पायेगी !

अरे , कोई तो बताओ  उसे ,
मैं रौशन हूँ तो वो है ,
मुझे अंधेरों में ढ़केल ,
वो खुद भी तो मर जायेगी !!

Wednesday, August 31, 2016

tanu thadani तनु थदानी देखो ना

अब मनाऊँ कैसे ?
रूठा भी
चला गया दूसरी दुनिया में !
बदल गया मैं
पर बदल नहीं पाया अपनी दुनिया !
रहना है इसी दुनिया में सूखी घास सा !!


रात को अंधेरों से रूठने मत देना ,
दिन में उजाले टूटने मत देना ,
बारिश हो तो भींगना ,
दौडना भागना ; मगर हाथ छूटने मत देना  !
बहुत कुछ छूट गया
जो छूट गया उसे बताऊँ कैसे ?
वो तो रच गया गले में इक प्यास सा !!


कल रात तूफान में उड़ गयी छत ,
घर नंगा हो गया ,
मैं कविताएँ लिखता रह गया जमीन पर ,
मेरे साथ हंसता - खेलता - लड़ता चेहरा
अचानक आसमान का हो गया !
मैं उस तक जाऊँ कैसे ?
देखो ना , मैं ही टूट गया एक विश्वास सा !!
------------------------तनु थदानी

Tuesday, July 12, 2016

तनु थदानी Tanu thadani चलो आज से हम ख़ामोश रहते हैं tanu thadani Ki kavitayen


मैंने अपनी आवाज निगल ली है ;
लोग उसे ख़ामोशी कहते हैं !


आप ढूंढो चुपचाप सी चुप्पी में
एक आवाज ;
आप चुन लो चुपचाप सी चुप्पी से
एक साज !


पूरी पूरी आवाज में
और पूरे पूरे साज में भी
नहीं सुन पाओगे एक भी शब्द !
शब्द आवाज में रहते ही नहीं बंधु ;
शब्द तो आंखों में रहते हैं ;
लोग जिसे ख़ामोशी कहते हैं !


जिसने भी अपनी आवाज उगल दी
वो फंस गया जंगल की रात में !
नहीं जी, मेरा दिल कोई भारत की संसद नहीं है ;
नहीं बनाने कोई कानून मुझे शोर शराबो में ,
न खुद के लिये
न दूसरों के लिये !
मैं सुकून से हूँ
अपनी ख़ामोशी की बात में !


शब्द जो आंखों में रहते हैं
वही तो आवाज बन पाते हैं !
चलो ; आज से हम ख़ामोश रहते हैं !!

Sunday, June 12, 2016

तनु थदानी tanu thadani ऐ पानी tanu thadani Ki kavitayen

ऐ पानी !
------------------
ऐ पानी !
तू मेरी आँखों में आता ;
मेरे खेतों में क्यूं नहीं आता ??
मेरे खेत गिरवी हैं रे !
मेरे कर्जों पे बरस जा ;
बहा दे मेरे कर्जों को
या डुबा दे उन खुदगर्जों को ;
जो मेरी भूख से आत्महत्या तक के सफर पर
चमकाते हैं राजनीति अपनी !


बेटे ने पढ़ाई छोड़ दी ,
पैसे नहीं भेज पाया ना !
मैं उसे समझाता हूँ ,
वो मुझे समझाता है !
मेरे दुखों को यूं सहलाता है ,
बताता है पढ़ाई ही गलत है शहरों में बाबा !
सिखाते हैं कि एक आक्सीजन होता है ,
जिसके साथ हाईड्रोजन मिलाने से
पानी का निर्माण है होता ,
ये तो गलत है ना बाबा !
मरे बैलों की पथराई आँखों ने
शहर में ढूंढ कर मुझसे पूछा ,
गंर पानी ऐसे बनता है तो
सूखा कैसे है होता ??


ऐ पानी !
मेरे खेतों की फटी बिवाईयों से दोस्ती कर ना !
मेरे जवान बेटे की झुर्रियों पे
बस एक बूंद बरस जा !


बेटा बताता है
तू आजकल बोतलों में बंद है !
तू तो बिक गया रे !
क्यूं अब भी तू जीवन है कहलाता ?
अगर जल ही जीवन है तो
तू मेरे खेतों में क्यूं नहीं आता ??
------------------- तनु थदानी



Tuesday, March 22, 2016

Tanu thadani तनु थदानी मेरी मुस्कान वापस आयी है





मेरे आंसुओं का खुशबू से तर हो जाना ;
नि:शब्दता को भींचना गले लगाना ;
जाहिर है तुमने कुंडी खटखटाई है ;
तुम्हारे साथ मेरी मुस्कान वापस आयी है !


नाहक पढ़ीं किताबें
कर डाले कागज़ काले ;
सीख न पाये दिल की भाषा पढ़ पाना  !
बहुत खोजा तेरे होने का मतलब ,
बीते कल को ढ़ोने का मतलब ;
मतलब का एक शहर समूचा ,
हाथ पकड़ना ; गुम हो जाना ;
फिर से तेरा लौट के आना ;
चुपचाप पड़े बिस्तर का गाना ;
जाहिर है हर सिलवट मुस्कायी है ;
सचमुच मेरी मुस्कान वापस आयी है !


देखो सागर का उछलना - मचलना ;
समझो उसका आनंदित हो जाना ;
जाहिर है उसमें नदी समायी है ;
ये मैं नहीं लिख रहा कविता
ये तो मेरी मुस्कान वापस आयी है !!
------------------- तनु थदानी



Saturday, March 12, 2016

tanu thadani तनु थदानी हे ईश्वर तू नहीं है बेहतर मेरी माँ से





अपनी माँ की गोद में
मैं भी कभी शहजादा रहा होऊँगा !
उम्र ने तो मुझे भिखारी बना दिया ;
अब प्यार मांगना पड़ता है !
लोरियों के हिसाब से बड़ा हो गया हूँ ना
सो अब जागना पड़ता है !


माँ ; तू तो आज भी मेरे गालों को सहलाना चाहती है  ;
जानता हूँ ; मगर नहीं पहुंच पाता ;
वक्त ने तो मुझे व्यापारी बना दिया !


मेरे लिए तो दुनियां आज भी शेषनाग पे टिकी है
बाकायदा बचपन के किस्सों में भटकता हूँ ;
सच तो ये है कि
खिलौने खरीदने के एवज़ में
सिलसिलेवार मेरी खुशियाँ ही बिकी हैं  ;
अंततः खुद खिलौना बन गया
छटपटाता हूँ सिर पटकता हूँ !
जरूरतों ने लिखने पढ़ने को मजबूर किया ,
मजबूरी ने तो मुझे अनाड़ी बना दिया !


हे ईश्वर ! तू नहीं है बेहतर मेरी माँ से ,
तेरे संसार की कोख़ में बहुत बेचैनी है ;
याद तो नहीं है पर निश्चित ही
मैं माँ के गर्भ में सुखी ज्यादा रहा होऊँगा !
---------------------- तनु थदानी