Thursday, November 13, 2014

दरक जाती है

दरक जाती है,
गुनगुनी सी मुस्कुराहट,
जब गौरेया बाज के पंजो में आती है !
टुथब्रश पर रखी जाती है पेस्ट की तरह,
फिर मटमैले पीले दाँतों पर मसली जाती है !
गांधी नोट से बाहर निकल नहीं रोयेगा ,
वैसे ही हँसता रहेगा ,
ये देख कर कि वो अंततः थूक दी जाती है !

किसी की चींख तब हकलाती  है ,
जब सुबकता है एक सपना ,
उस नन्ही बच्ची का ,
जिसका नाम तो कुछ भी हो सकता है ,
मगर पता इस अंतरिक्ष में घूमते देश के एक गाँव का ही होता है ,
जहाँ मिड डे मील के साथ स्कूल है ,
नहीं आते मास्टर
गायें बंधती हैं सरपंच की वहाँ ,
पूरे सुकून से गांव का कुत्ता वहाँ सोता है !

ये हम कहाँ रह रहें हैं ?
माँ कहते हैं जमीन को ,
खरीदते हैं फिर बेच देते हैं !
बड़े कायदे से गर्म गोस्त को खाते हैं ,
हड्डीयाँ फेंक देते हैं !
वो मासूम बच्ची ,
वो गौरेया ,
क्यों केवल गोस्त का टुकड़ा नजर आती हैं  ?
तुम भले मत शर्मिंदा होना मेरे पढ़े लिखे दोस्तों ,
मैं तो अनपढ़ हूँ गांव का ,
ये कैसे देश में सांस  ले रहा हूँ ,
मुझे तो बेहद शर्म आती है !


Thursday, September 18, 2014

चौराहे पर चिल्ला कर कहना



चौराहे पर चिल्ला कर कहना,

'हाँ ! मुझे गर्व है कि मैं हिन्दू हूँ !'

किसी को डराने की धारायें लगेंगी ,

गिरफ्तार होंगे , पुलिस पकड़ेगी !




चौराहे पर चिल्ला कर कहना,

'हाँ ! मैं मुस्लिम हूँ ,

सिवाय अल्लाह के किसी को नहीं मानता !'

पूरा चौराहा हो जायेगा खाली ,

गिर जायेंगे शटर,

पुलिस डरेगी ,

सेना को खबर देगी !




यहाँ हिन्दू होना या मुसलमान होना ,

निःतांत गैर जरुरी था ,

मगर जरुरी बनाया गया !

क्यों कि किसी का गरीबी हटाओ नारा निकम्मा हुआ था ,

किसी का शाईनिंग इंडिया झूठा साबित हुआ था !




हमें क्यों गर्व है हम भारतीय हैं ?

जो लाउडस्पीकर के मुद्दे पर ,

कई कई आवाजों को यूं दफ्न करते हैं ,

गोया भारतीय होना कीड़े मकोड़े होने सा है !




बेवाओं के आँसू हथेली पर रखना ,

बताना हिन्दू के हैं या मुस्लिम के ??




हमें क्यों गर्व है हम भारतीय हैं ?

ऐसे भारतीय जिसके वीर्य में ,

नहीं है ताकत भारतीय पैदा करने की !

तभी तो पैदा होते हैं ,

मात्र हिन्दू या मुसलमान !

होश आते ही ,

हो जाते मरने मारने पर उतारू ,

और मुद्दे भी ग़ज़ब होते हैं ,

कहीं मंदिर कहीं अजान !




नहीं है जन्नत अल्लाह के पास!

हमें बनानी पड़ेगी जन्नत,

इसी धरती पर,

इसी जीवन में !




न तो गीता हमें क्षमा करना सिखाती है ,

न कुरान किसी को क्षमा करना बताती है !

हमें भारत की भूमि से होगा सीखना क्षमा करना ,

जिसने अपनी छाती को रक्त रंजित करने वालों को ,

टुकड़े टुकड़े करने वालों को ,

कर दिया क्षमा !

क्षमा की भूमि पर ही स्वर्ग बसाना होगा !




मत पढ़ाओ गीता या कुरान बच्चों को ,

वे बिगड़ जायेंगे और हिन्दू - मुसलमान बन जायेंगे !

हमें अपने बच्चों को केवल क्षमा पढ़ाना होगा !

ताकि वे भारतीय बनें !




कोई नहीं डरेगा ,

न शटर गिरेंगे न पुलिस पकड़ेगी ,

जब बच्चे हमारे बीच चौराहे पर,

पूरे गर्व के साथ 'हम भारतीय हैं !' चिल्लायेंगे !!

सच कहता हूँ ,

तब डर को भी पसीने आयेंगे ,

जब हिन्दू मुस्लिम भारतीयता में घुलमिल जायेंगे !!

Saturday, September 13, 2014

मैं जब भी दर्द लिखुंगा


मैं  जब  भी  दर्द  लिखुंगा, 
नम  दीवार  लिखुंगा !

एक  झुलसी  वफा की शक्ल,
एक  सन्नाटा,
एक  तन्हाई,
फिर  तेरा  प्यार  लिखुंगा !

मैं  जब  भी  दर्द  लिखता  हूँ ,
मुझमें  मैं  खोता  है !
मैं  कतई  मैं  नहीं  होता ,
कईयों  के  आंसू  बटोर  कर,
मेरे  दिल  के  खुले  बरामदे  में ,
मेरा  सुकून  रोता  है !

मैंने  जब  भी  दर्द  लिखा है ,
एक  बिस्तर  लिखा  है !
नागफनियों  से  लथपथ  बिस्तर  पे ,
मैंने  इक इक  सांसे  खोई  हैं !
क्या  लिखा  देख  लिया  ,
क्यूँ  लिखा  , ये  न समझा  कोई  है !
कहीं  परोसा  गया  ,
कहीं  बजी  तालियाँ ,
कोई  शब्दों  पे फिदा  हुआ  ,
कोई  मेरी  शैली  पे !
हर  इक  ने  लिया  आनंद  ,
केवल  मेरी  माँ  रोई  है !!
--------------  तनु थदानी

Wednesday, September 3, 2014

भूख को पकाता है ठंडे चूल्हे पर_तनु थदानी

भूख को पकाता है ठंडे चूल्हे पर,
पढ़ाई छोड़ मुन्ना कमाने की आदत डालता है ,
फिर रोता छाती पीटता है अपने नसीब पर ,
नहीं जानता कि उसका नसीब ही तो,
नेताओं को पालता है !

हम आज भी नसीब से ही खुशियाँ छानते हैं !
खाना खाने को भी इक भाग्य मानते हैं !
क्या खूब है जीने का तरीका मित्र ,
बिकते हैं पर कीमत भी नहीं जानते हैं !

हमें आ गया है करना व्यापार ,
खेत बेच चुके ,
अब रिक्शे के मालिक हैं !
कितने सलीके से आजकल रिक्शे पे ही सोते हैं !
हम वो सब करने को हैं तैयार ,
जिसमें हम मानव नहीं  मशीन होते हैं !

सपने ओढ़ सोता पूरा हुजूम ,
आँखें खोलने को नहीं है राजी !
पूरा हिन्दुस्तान लटका है रात की सलीब पर,
सपने अच्छे हैं बस इसलिए हर कोई,
न आँखें खोलता है ,
ना ही कुछ बोलता है ,
खिड़की से आती धूप को ढ़केल ,
सर पे खड़ी सुबह को टालता है !!

पर मुझे नींद क्यूँ नहीं आती ?
जागता हुआ मैं इक तमाशा बनता हूँ ,
सोते लोग तमाशबीन होते हैं !
खेत से रिक्शे तक के सफर पर ,
संसद है मौन
शेयर बाजार भी कुछ नहीं बोलता है !

मेरी जिक्र की चौहद्दी में तो फिर भी वही मुन्ना है
जिसका पढ़ाई छोड़ना मुझे आज तक सालता है !!
--------------------------  तनु थदानी

Tuesday, August 26, 2014

मैं जब भी लेता हूँ अपनी तलाशी

मैं जब भी लेता हूँ अपनी तलाशी ,
निकलती हो केवल तुम प्रिये ,
मेरी करवटों से ,
मेरी आदतों में ,
मेरी खामोशी तक से !
फिर क्यों नहीं लेती हो मान ये बात जरा सी ?

चलो खोदते हैं इक गढ्ढा ,
मेरे ही जिस्म में ,
मेरी ही साँसो के आस पास ,
बोते  हैं उसमें मेरी परछाई!
देखना !
फिर भी तुम ही खिलोगी अंततः मेरे अंतस से !
क्यों कि मैं तो खुद ही के जिस्म में हूँ अनिवासी !!

क्यूँ साबित करना पड़ता है प्रेम को ?
क्यूँ जिस्म,  आवेग को ही गवाही के लिये बुलाता है ??
इस सदी की बदनसीबी ही तो है ,
कि , सिकुड़ कर छोटा हुआ प्रेम ,
संभोग के चश्मे से ही नज़र आता है !

इक बार मेरी आत्मा में ,
समर्पण बो के देखना तुम अपना ,
उगेगा प्रेम ही मात्र!
जिस्म की सीढ़ियों से चढ़ कर ,
प्यार की ऊँचाईया ढ़ूंढ़ते लोगों में ,
मैं भी हो सकता हूँ एक पात्र,
जो पीता तो है अनवरत डूब कर ,
आत्मा फिर भी रह जाती है प्यासी !!

Monday, May 19, 2014

चलो ! एक समूची हँसी के लिये


चलो ! एक समूची हँसी के लिये ,
मुस्कुराहट की किस्तें जमा करते हैं !

मगर करें कहाँ जमा ?

माँ का कमरा नम दिखता है ,
जरुर सोख लेगी नमी ,
हमारी मुस्कुराहट की पहली किस्त!

कतई नहीं पूछेगें माँ से कि नमी आती कहाँ से है !
पापा तस्वीरों में ही नहीं ,
हमारे दिलों में रहते हैं !
माँ ! देख हमारी मुस्कुराहटों में पापा हैं ना ?
पापा भी कभी  मरते हैं ??

पूरी दिनचर्या को सलीब सा माँ कंधों पे ढ़ोती है ,
माँ की चहल कदमी ,
एक एक पदचाप ,
पूरे घर में जब मौन लिखता है ,
सच कहूँ  , माँ का कमरा ही नहीं ,
पूरा घर नम दिखता है !
क्यूँ नहीं  देखा माँ को , कि माँ भी कभी रोती है !

परछाईयों ने जब्त कर ली है रौशनी ,
चलो ! परछाईयों के टुकड़े करते हैं!

रौशनी होगी तो देखेगी माँ हमारी मुस्कुराहट ,
रौशनी होगी तो माँ हँसी देखेगी हमारी ,
माँ  जरुर हँसेगी ,
चलो ! पूरे घर में रौशनी भरते हैं !!





Thursday, April 17, 2014

कभी आना प्रिये मेरे घर भी




कभी आना प्रिये मेरे घर भी ,
जहाँ मैं बिलकुल अकेला रहता हूँ साथ तुम्हारे !

मेरी अजन्मी बिटिया की चींखों से पटी दीवारें ,
ना छूना इन्हें ,
ये नम हैं आँसुओं से मेरी !

भीतर दालान में ,
उम्र की रस्सीयों पर सूख रहीं हैं यादें तुम्हारी !

आजकल मैंने दालान में बैठना ही बंद कर दिया !
तुम्हें मेरा जिस्म नजर आया ,
क्यूँ नजर न आयी  वो धुन ,
जो मेरी सांसो में किसी मासूम ने  छेड़ी !

नहीं रोक पाओगी ,
इक दिन यकायक ,
आ के मेरे सीने से लिपट जायेगी मेरी बिटिया !
तुम्हारी तमाम बंदिशों के बावजूद ,
वो शामिल होगी मेरी हंसी में इक दिन,
क्यूँ कि उसने मुझमें घुल के ,
कर ली है जीने की तैयारी !

कुछ नहीं आयेगा हाथ तुम्हारे ,
ना मैं , न मेरा जिस्म, ना रूह ही मेरी !!

Tuesday, February 18, 2014

जब स्त्री सौंपती है अपनी देह

जब स्त्री सौंपती है अपनी देह ,
तो वो केवल देह ही नही सौंपती ,
वो सौंपती है अपना पूरा अस्तित्व ,
पूरा विश्वास ,
और समूचा प्यार !

ऐसा क्यूँ है होता ,
समुंदर मीठी नदी को समाहित कर के भी ,
हो नहीं पाता मीठा ,
अकड़ता , उफनता , शोर शराबे से लबालब ,
हर अदा है  , मगर मीठेपन से लाचार  !

केवल सात फेरों से ,
बंध  जाती है पूरी नदी ,
मगर नहीं बांध पाती वो समुंदर को ,
अपने संपूर्ण समर्पण से भी !
डूबती उतरती जा रही अनवरत ,
कई  सदियों से उसी समुंदर में ,
होती है विलीन  चुपचाप ,
क्यूँ हर बार उसी में है खो जाने को  तैयार  ?

रात के दरवाजे से जब दबे पांव भीतर आयेगी सुबह ,
खुश मत होना सखी ,
सुबह आते ही उस रात को खा जायेगी ,
पूरा बरामदा उसकी उल्टियों से भर जायेगा !
अजगर तो बस मुस्कुरायेगा ,
डरी सहमी गौरेया अपने ही घोंसले में ,
बच्चों को डैनों में  समेटे छटपटायेगी  !

कभी समुंदर  , कभी अजगर , केवल पात्र बदलेगा ,
किस्मत नहीं बदलेगी  , न नदी की न गौरेया की
किस्सा भी वही रहेगा हर बार  !!





Friday, January 10, 2014

धूप की टक्कर से लहुलुहान अपाहिज छांव


धूप की टक्कर से लहुलुहान  अपाहिज छांव  !
नहीं है शहर  में तेरा कोई ,
आना मेरे गांव ,
आज भी मेरे गांव में ,
जब मरता है कोई ,
रोता है समूचा गाँव !
बचपन आज भी जीवित है यहाँ ,
आ के देखो तो सही ,
बारिशों में आज भी नजर आयेगी यहाँ कागज की नाव  !

आज भी मेरे गांव दादी दादा नजर आते हैं ,
आज भी जिंदा है यहाँ ननिहाल ,
पंक्षी कंधों पे बैठ इतराते हैं ,
मिल जाता परिंदा हर डाल  !

यहाँ हर तरफ परिवार ही परिवार ,
मत पूछो घर है कहाँ ??
देखो तो पूरा शहर घरों से पटा  पड़ा है ,
मगर परिवार लापता है  !
घूमता है पूरा शहर दिन भर इधर उधर ,
गन्तव्य है नहीं कहीं ,
फिर भी चलते क्यूँ हैं नहीं पता है  !

यहाँ गांव में धूप से नहीं होगी टक्कर ,
आ के देखो तो सही ,
वही धूप यहाँ सहलायेगी तेरे पांव  !!
----------------- तनु थदानी