मैं जब भी दर्द लिखुंगा, ,
नम दीवार लिखुंगा !
एक झुलसी वफा की शक्ल,
एक सन्नाटा,
एक तन्हाई,
फिर तेरा प्यार लिखुंगा !
मैं जब भी दर्द लिखता हूँ ,
मुझमें मैं खोता है !
मैं कतई मैं नहीं होता ,
कईयों के आंसू बटोर कर,
मेरे दिल के खुले बरामदे में ,
मेरा सुकून रोता है !
मैंने जब भी दर्द लिखा है ,
एक बिस्तर लिखा है !
नागफनियों से लथपथ बिस्तर पे ,
मैंने इक इक सांसे खोई हैं !
क्या लिखा देख लिया ,
क्यूँ लिखा , ये न समझा कोई है !
कहीं परोसा गया ,
कहीं बजी तालियाँ ,
कोई शब्दों पे फिदा हुआ ,
कोई मेरी शैली पे !
हर इक ने लिया आनंद ,
केवल मेरी माँ रोई है !!
No comments:
Post a Comment