तुम हमेशा मेरी नींद में प्रस्तावित हो !
खुली आँखों में तो होते हैं हम ,
जिस्म के पहरों में ,
क्या तुम समझ पा रही हो
जिस्म से परे इश्क को ?
अगर हाँ, तो
मैं सिखाऊंगा तुम्हे ,
दुःख रहित जीवन जीने का सलीका ,
जहां हम पूर्णत वजूदहीन हो कर करते हैं प्रेम ,
जहां आनंद के लिये वर्जित होगा जीना ,
हाँ ! आनंद से जीने के लिये आमंत्रित होंगे सब !
कब आओगी तुम ?
चलो छोड़ो ,
तुमने तो इर्द - गिर्द बसाया है परिवार ,
जहां तुम सबो के साथ ,
सब तुम्हारे साथ ,
गुंथे हुये हैं अपनी - अपनी जरूरतों के लिये !
आनंद से जीने के लिये कोशिश करती हो ,
मगर जी नहीं पाती हो ना ?
क्यों तुमने सात फेरे ले कर ,
मुझे इस्तेमाल किया केवल एक रिश्ते के रूप में ,
फिर मुझे दूरियों के साथ किया अस्वीकार !
विश्वास करो मैं दूर जरुर हूँ ,
मगर मेरी बाहों के घेरे में ,
केवल तुम और केवल तुम ही पारित हो !
आना जरुर मेरे सपनो में प्रिय ,
क्यों कि तुम हमेशा मेरी नींद में प्रस्तावित हो !
खुली आँखों में तो होते हैं हम ,
जिस्म के पहरों में ,
क्या तुम समझ पा रही हो
जिस्म से परे इश्क को ?
अगर हाँ, तो
मैं सिखाऊंगा तुम्हे ,
दुःख रहित जीवन जीने का सलीका ,
जहां हम पूर्णत वजूदहीन हो कर करते हैं प्रेम ,
जहां आनंद के लिये वर्जित होगा जीना ,
हाँ ! आनंद से जीने के लिये आमंत्रित होंगे सब !
कब आओगी तुम ?
चलो छोड़ो ,
तुमने तो इर्द - गिर्द बसाया है परिवार ,
जहां तुम सबो के साथ ,
सब तुम्हारे साथ ,
गुंथे हुये हैं अपनी - अपनी जरूरतों के लिये !
आनंद से जीने के लिये कोशिश करती हो ,
मगर जी नहीं पाती हो ना ?
क्यों तुमने सात फेरे ले कर ,
मुझे इस्तेमाल किया केवल एक रिश्ते के रूप में ,
फिर मुझे दूरियों के साथ किया अस्वीकार !
विश्वास करो मैं दूर जरुर हूँ ,
मगर मेरी बाहों के घेरे में ,
केवल तुम और केवल तुम ही पारित हो !
आना जरुर मेरे सपनो में प्रिय ,
क्यों कि तुम हमेशा मेरी नींद में प्रस्तावित हो !
बहुत खूब ... नींद में बस ओ ही क्यों ... कोई भी प्रस्तावित होता है .. उसपे अपना बस कहाँ होता है ...
ReplyDeleteअच्छी रचना है ....