Tuesday, November 24, 2015

तनु थदानी tanu thadani हां मैं हूँ बहुत तन्हा




हां ! मैं हूँ बहुत तन्हा;
मेरा बिस्तर तन्हा;
उसकी हर इक सिलवट तन्हा ;
मैं -बिस्तर -सिलवट सब हैं साथ घुले मिले ;
क्यूँ मेरी तन्हाई नहीं घुल पाती है ?





मेरे घर की चारों दीवारें हैं साथ
 पूरी छत को सम्भाले ;
मगर चारों खड़ी हैं तन्हा !
बरसों से बन्द पड़ी खिड़कियाँ ;
खिड़कियों पर जंग खायी छिटकनियां ;
क्यूँ चुप पड़ी हैं तन्हा ?
क्यूँ नहीं खुल पाती हैं ?





हमारी रिश्तेदारी
 केवल अपनी अपनी तन्हाईयों से है !
हमारी शिकायत
 एक दूसरे के बीच की खाईयों से है !
शाम को चाँद आता है तन्हा ;
सुबह से पहले जाता है तन्हा !
पूरी तन्हाई टूट कर बिखर है जाती
 जब सुबह सुबह बुलबुल गाती है !



मैं कभी खुश नहीं रहा अपनी तन्हाईयों से ;
बिस्तर -सिलवट -खिड़की -छिटकनी-खाईयों से !




मैं एक भी आंसू नहीं गवांऊगा ;
मेरी तन्हाईयों के तमाशबीन
 केवल तुम रोओगे ;
जिस दिन मैं तुम्हें तन्हा कर जाऊँगा !


पूरी कायनात से टपकती रिसती
 सख्त सूखी तन्हाईयां ;
चिपक गई हैं मैल की मानिंद ;
क्यूँ नहीं धुल पाती हैं ?
जबकि मुझे भी रोज सुबह सुबह ;
गाती हुई बुलबुल भाती है !!
----------------- तनु थदानी

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