Saturday, May 18, 2013

तनु थदानी की कवितायें , चलो पुराना संदूक खोलते हैं tanu thadani ki kavitaayen chlo puraana sanduk kholte hain


वो  तो   नींद  से  भी   लंबा  सपना  था ,
जिसमे  पिता  के  मुंह  पर ,
थूक  का  सैलाब  फैला  था ,
जिसमे  बेटी  पिता  की  गोद  में  जाने  से  कतराती  है ,
कि  , पिता  उसे  छूता  है  तो  उसे  डर  लगता  है , सहम  जाती  है !

नेपथ्य  में  असंख्य  पीड़ाओं  की  कथाएँ  हैं ,
मगर  आगे  नाटक  कुछ  और  चल  रहा  होता  है !
दर्शक  चुपचाप  बैठे  देखते  हैं ,
सुनते  हैं  पर  समझते   नहीं हैं ,
कि  खिलखिलाहट  के  शोरगुल  के  पीछे  भी  कोई  रोता  है ! 

जब  शर्म  एक  इतिहास  बन  जाती  है ,
तब  बेटियां  अपने  ही  घरों  में ,
अपने  कमरों  में  दरवाजे  की  छिटकनी  लगा  कर सोती हैं !
क्यूँ  हमने  सतह  छोड़  दी ?
क्यूँ  डूब  रहे  हैं  हम ??
ये  सैलाब  आया  कहाँ  से ???
ये  तो  आँसू  हैं  बेबसी  के ,
ध्यान  से  देखो -आज  पूरी  सदी  रोती  है  !!

चलो  पुराना  संदूक  खोलते  हैं ,
वही  पुरानी  किताब  निकालते  है,
पढ़ते  हैं  वही  कहानी  फिर  से ,
जिसमे  बेटियाँ  परियों  की  कहानियाँ  सुनती  हैं ,
पिता  की  बाहों  में  झूलती  हैं ,
बेधड़क  पिता  के  कन्धों  पे  चढ़  जातीं  हैं ,
फिर  गिरतीं  हैं - रोती  हैं 
सुबुकती  अनवरत  रोती  बिटिया  को  चुप  कराते - कराते ,
यकानक हँसते  हुये  पिता  की  आँखे  भर  आती  हैं  !!
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