जिसे हम बचपन से जानते हैं ,
जो हमारे साथ बड़ा होता है ,
यकानक कुछ ज्यादा बड़ा होने का प्रयत्न करता दीखता है ,
मतलब को बांधता है ,
और बातों में फेंकता है !
जो बचपन से पहचानता है ,
तब यकानक अपरिचित हो जाता है ,
कबाड़ सी जिम्मेदारियों में जब हमें फंसा देखता है !
ऐसा क्यूँ होता है ,
कि , हम अचानक ही बच्चे से बड़े हो जाते हैं !
सम्बन्ध बैठ जाते हैं ,
हमारे आजू - बाजू पैसे खड़े हो जाते हैं !
सर्वप्रथम घरों में कमरे बाँटते हैं ,
फिर रसोई ,
अंततः घर बाँट खुश हैं होते ,
जब गाँव में खेतों का करते हैं हिस्सा ,
माँ - बाबूजी गठरियों की तरह चुपचाप रहते हैं ,
लगता ही नहीं की वे हैं रोते ,
आँखों के गड्ढों को हाथों से पाटते हैं !
हम , जो अपनी आँखों का पानी तक बेच देते हैं ,
सूखता है गला , तब ओस चाटते हैं !
ऐसा यूँ होता है ,
कि परिणामों के मेले में
इकठ्ठे घूमते हैं ,
कपडे खरीदने के लिये शर्म बेचते हैं !
जीवन का व्याकरण तो यूँ हैं रटते , जैसे आदमी नहीं तोते हैं ,
हाथों में हाथ होने के बावजूद हम , अचानक गुम होते हैं !
रुको !
देखो सूजन आ गयी शक्ल पे ,
बायें हाथ ने अभी कल ही तो मारा था ,
आज दायाँ हाथ उसे सेकता है !
पैसा तो हमने पैदा किया था ,
आज पैसों ने हमें ही खरीद लिया !
हम बिक चुके हैं फिर भी बचने की शुरुवात करते हैं ,
चलो , अपने- अपने अस्तित्व से ,
सर्वप्रथम अपना- अपना मैं काटते हैं !
जो हमारे साथ बड़ा होता है ,
यकानक कुछ ज्यादा बड़ा होने का प्रयत्न करता दीखता है ,
मतलब को बांधता है ,
और बातों में फेंकता है !
जो बचपन से पहचानता है ,
तब यकानक अपरिचित हो जाता है ,
कबाड़ सी जिम्मेदारियों में जब हमें फंसा देखता है !
ऐसा क्यूँ होता है ,
कि , हम अचानक ही बच्चे से बड़े हो जाते हैं !
सम्बन्ध बैठ जाते हैं ,
हमारे आजू - बाजू पैसे खड़े हो जाते हैं !
सर्वप्रथम घरों में कमरे बाँटते हैं ,
फिर रसोई ,
अंततः घर बाँट खुश हैं होते ,
जब गाँव में खेतों का करते हैं हिस्सा ,
माँ - बाबूजी गठरियों की तरह चुपचाप रहते हैं ,
लगता ही नहीं की वे हैं रोते ,
आँखों के गड्ढों को हाथों से पाटते हैं !
हम , जो अपनी आँखों का पानी तक बेच देते हैं ,
सूखता है गला , तब ओस चाटते हैं !
ऐसा यूँ होता है ,
कि परिणामों के मेले में
इकठ्ठे घूमते हैं ,
कपडे खरीदने के लिये शर्म बेचते हैं !
जीवन का व्याकरण तो यूँ हैं रटते , जैसे आदमी नहीं तोते हैं ,
हाथों में हाथ होने के बावजूद हम , अचानक गुम होते हैं !
रुको !
देखो सूजन आ गयी शक्ल पे ,
बायें हाथ ने अभी कल ही तो मारा था ,
आज दायाँ हाथ उसे सेकता है !
पैसा तो हमने पैदा किया था ,
आज पैसों ने हमें ही खरीद लिया !
हम बिक चुके हैं फिर भी बचने की शुरुवात करते हैं ,
चलो , अपने- अपने अस्तित्व से ,
सर्वप्रथम अपना- अपना मैं काटते हैं !