Wednesday, August 14, 2013

तनु थदानी की कवितायें मेरे बेटे को कभी ना रुलाना tanu thadani ki kavitaayen mere bete ko kabhi naa rulaana

बस  मांगी  थी  इक  मुस्कान ,
बेटे  ने  वो  पूरा  पार्क  ही  तोहफ़े  में  दे  दिया, 
जहाँ  सुबह -सुबह , 
समूह  बना कर  जोर -जोर  से  हँसते  लोग जमा  होते  हैं !
फिर  कभी  कुछ  नहीं माँगा  बेटे  से ,
फिर  कभी पता  तक  नहीं  चलने  दिया ,  
कि , हम  भी  कभी  रोते  हैं !!

पार्क  में  जोर-जोर  से  हँसते  लोग ,
इक  दूसरे  पर  ही  तो  हँसते  हैं  !
हम  शहरी  लोग  उम्र  के  आखरी  पड़ाव  में ,
ऐसे  ही  किसी पार्क  में ,
टूटे - फूटे  समूहों  में  स्वत : स्वत : फंसते  हैं !

कच्ची  बुनियादों  पे  खड़ी  दीवालें  ,
ता -उम्र  रोती  हैं ,  
बेशक  समझदार  लोग  बताते  हैं  ,
वो  तो  नमी  होती  है !
नम  दीवालों    पे  बड़ा सा  मुस्कुराता  फोटो  लगाते  हैं ,
कम  से   कम  खर्च  में  पूरी  दीवाल   छिपाते  हैं !
सचमुच  हम  ही  बुद्धू  थें ,
आजकल  के  बेटे  तो  समझदार  होते  हैं ,
उन्हें  सब  होता  है  पता ,
कि , हम  कब - क्यूँ - कैसे  रोते  हैं ! 

हे  ईश्वर ,
हमने  तो  क्षमा  का  भुगतान ,
अपनी  साँसों  से  कर  दिया ,
मेरे  बेटे  को  कभी  ना  रुलाना ,
बेटे   हमारे  अपने  बचपन  सहीत ,
अब  भी  हमारे  दिलों  में  बसते  हैं !!   










    

Monday, August 12, 2013

तनु थदानी की कवितायें प्रेम में रखो केवल भावना tanu thadani ki kavitaayen prem me rakho kewal bhawukta

जुबां  से  दिल  और  दिमाग  की  दूरी  तो ,
होती  है  बराबर ,
लेकिन  जुबां  पर  क्यूँ  दिमाग  ही  सवार  होता  है ?
अगर  होता  जुबां  में  दिल ,
या  होती  दिल  में  जुबां , 
सच  कहता  हूँ , 
हम  भूल  जाते ,  कि ,
ग़लतफ़हमी  का  मतलब  क्या  होता  है !

जीना  तो  किसी  की  आँखों  में  जीना ,
पीना  तो  किसी  की  आँखों  से पीना ,
अंधकार  तो  सब  निगल  जाता  है , 
क्या  सूरज  ने  कभी  कुछ  छीना ?
सूरज  तो  सबको  बराबर  धूप  बाँटता  है , 
मिलेगी  तुझे  भी  तेरे  हिस्से  की  धूप , 
पगले  तू  क्यों  रोता  है ??

जिन - जिन  को  चाहिये  प्यार  के  बदले  प्यार 
सब  वो  पश्चिम  जायें, 
जिन्हें  बदले  प्यार  के  कुछ  ना  चाहिये ,
मेरे  पीछे  पूरब  आयें !
रास्ता  दूर  है  मगर  मंजिल  मिलेगी , 
आशा  की  इक  किरण  भी  इधर  से  ही  खिलेगी ,
क्यों  कि  ये  निश्चित  है  कि ,
सूरज  का  उदय  पूरब  से  ही  हर  बार होता  है !

अगर  हम  जुबां  पे  राज  करें ,
तो  हम  जुबां  से  राज  करेंगे ! 
अगर  हाथ  ना  मिलायें ,
हम  केवल  दिल  मिलायें , 
तो  शातिर  दुखों  का  पर्दाफ़ाश  करेंगे !
अपनी  गर्दन  पे  केवल  अपना  सिर  रखो  ना , 
क्यूँ   दूसरों  के  सिर  को  बेकार  ढ़ोता  है  ??

प्रेम  को  परिभाषित  करने  में , 
केवल  उम्र  की  लकड़ियाँ  न  तोड़ो ,
केवल  और  केवल  प्रेम  करो , 
मगर  अपनी  भावुकता  तो  छोड़ो !
प्रेम  में  रखो  केवल  भावना , 
भावुकता  में  तो  केवल  शब्दों  का  खिलवाड़  होता  है !!