बस मांगी थी इक मुस्कान ,
बेटे ने वो पूरा पार्क ही तोहफ़े में दे दिया,
जहाँ सुबह -सुबह ,
समूह बना कर जोर -जोर से हँसते लोग जमा होते हैं !
फिर कभी कुछ नहीं माँगा बेटे से ,
फिर कभी पता तक नहीं चलने दिया ,
कि , हम भी कभी रोते हैं !!
पार्क में जोर-जोर से हँसते लोग ,
इक दूसरे पर ही तो हँसते हैं !
हम शहरी लोग उम्र के आखरी पड़ाव में ,
ऐसे ही किसी पार्क में ,
टूटे - फूटे समूहों में स्वत : स्वत : फंसते हैं !
कच्ची बुनियादों पे खड़ी दीवालें ,
ता -उम्र रोती हैं ,
बेशक समझदार लोग बताते हैं ,
वो तो नमी होती है !
नम दीवालों पे बड़ा सा मुस्कुराता फोटो लगाते हैं ,
कम से कम खर्च में पूरी दीवाल छिपाते हैं !
सचमुच हम ही बुद्धू थें ,
आजकल के बेटे तो समझदार होते हैं ,
उन्हें सब होता है पता ,
कि , हम कब - क्यूँ - कैसे रोते हैं !
हे ईश्वर ,
हमने तो क्षमा का भुगतान ,
अपनी साँसों से कर दिया ,
मेरे बेटे को कभी ना रुलाना ,
बेटे हमारे अपने बचपन सहीत ,
अब भी हमारे दिलों में बसते हैं !!
बेटे ने वो पूरा पार्क ही तोहफ़े में दे दिया,
जहाँ सुबह -सुबह ,
समूह बना कर जोर -जोर से हँसते लोग जमा होते हैं !
फिर कभी कुछ नहीं माँगा बेटे से ,
फिर कभी पता तक नहीं चलने दिया ,
कि , हम भी कभी रोते हैं !!
पार्क में जोर-जोर से हँसते लोग ,
इक दूसरे पर ही तो हँसते हैं !
हम शहरी लोग उम्र के आखरी पड़ाव में ,
ऐसे ही किसी पार्क में ,
टूटे - फूटे समूहों में स्वत : स्वत : फंसते हैं !
कच्ची बुनियादों पे खड़ी दीवालें ,
ता -उम्र रोती हैं ,
बेशक समझदार लोग बताते हैं ,
वो तो नमी होती है !
नम दीवालों पे बड़ा सा मुस्कुराता फोटो लगाते हैं ,
कम से कम खर्च में पूरी दीवाल छिपाते हैं !
सचमुच हम ही बुद्धू थें ,
आजकल के बेटे तो समझदार होते हैं ,
उन्हें सब होता है पता ,
कि , हम कब - क्यूँ - कैसे रोते हैं !
हे ईश्वर ,
हमने तो क्षमा का भुगतान ,
अपनी साँसों से कर दिया ,
मेरे बेटे को कभी ना रुलाना ,
बेटे हमारे अपने बचपन सहीत ,
अब भी हमारे दिलों में बसते हैं !!