Saturday, July 20, 2013

तनु थदानी की कवितायें है कहाँ प्रेम ?? tanu thadani ki kavitaayen hai kahan prem ??




मैं  प्रेम   की  कविता  नहीं  लिखुंगा  कभी ,
किसके  लिये लिखूं  ?
है  कहाँ  प्रेम  ??
हमारे  समाज  में  प्रेम  मात्र  कविता  में  बचा  रह  गया  है !

अगर  न  रोने   का  वादा  करो  तो  मैं दिखाऊंगा  तुम्हे , 
प्रेम  का क्षत - विक्षिप्त  शव  छपरा के  अस्पताल  में !
अभी  तक  मांओं  के  आंसुओ  के  निशान  ताजा  हैं ,
कभी  ना  रोने  वाला  पिता  भी है  बिलखता - रोता !
जारी  है  मौत  की  सरसराहट ,
एक   बिस्तर  से  दूसरे  बिस्तर ,
छटपटाती  मासूम  जिंदगियों  के  अगल - बगल !
क्या  प्रेम  है  बचा  हमारे  समाज  में ?
अगर  होता  तो  ये  दृश्य  ना  होता !!

नेताओं  की  खिली  बाँछों  में ,
राजनीति  से  प्रेम  नजर  आता  है !
उस  बनिये  का  पैसे  से  प्रेम  समझ  आता  है !
दलाल  दर  दलाल  कमीशन - प्रेम  मंडराता  है !
सभी  व्यस्त  हैं  अपने  प्रेम की  परिभाषा   को चुस्त  रखने  में !
ये  भी  कोई  शोध  का  विषय  है ,
कि गाँव  का  बच्चा  मिड- डे  मील क्यों  खाता है ??  

प्रेम -रस  में  डूबे  शब्दों  के  लूटेरे ,
अध्यात्म  की  चाश्नी  बेचने  वाले  हजारो  डेरे ,
कितनी  सहजता  से आँखे  मूंद  निकल  गयें  सुबह -सुबह ,
उन्हें  तो  प्राणायाम  करना  था  ना !!

मैं  प्रेम  के  जज्बातों  के  साथ  नहीं  दिखुंगा  कभी ,
किसके  लिये  दिखुं ?
है  कहाँ  प्रेम  ??


तुम  राजनीति  करते  लोग ,प्रवचन  करते  लोग ,व्यापार  करते  लोग 
सब  हो  हत्यारे  प्रेम  के !!
मैं  नहीं  कह  रहा  ये  सब ,
गौर  से  सुनना  आवाज  अभी  तक  गूंज  रही  है ,
प्रेम  से  वंचित  वो  गाँव  का  बच्चा 
अस्पताल  में  मरने  से  पहले  कह  गया  है !!
  

  

Wednesday, July 10, 2013

तनु थदानी की कवितायें हम तो आखिर इंसान हैं ना tanu thadani ki kavitaayen ham to aakhir insaan hain naa




हम  प्यार  करना  क्यों  नहीं  सीख  पाते ?
गवां    देते  हैं  पूरी  उम्र ,
शादी  करते  हैं ,
बच्चे  होते  हैं ,
और  बूढ़े  हो  जाते  हैं ,
फिर  अफ़सोस  करते  हैं ,
कि ,  सब  किया जीवन  में , मगर  प्यार  क्यों  नहीं किया ?  

पहले  घर  लेते  हैं ,
उसमे  परदे - फर्नीचर  लगाते  हैं,  
फिर  रिश्तों के  हिसाब से बने  कमरों  में ,
खुद   को  कैद  कर  पूरी  खामोशी  से  चिल्लाते  हैं ,
कि ,  हमने  मकान  क्यूँ  लिया , घर  क्यूँ  नहीं  लिया  ?

करोड़ो  कीड़ों - मकोड़ों  के  बीच ,
अपरिचित सी  शक्ल  लिये ,
जीवन  गुजारते  हम , हमारे  दोस्त  , हमारे  अपने ,
मर  जाते  हैं  अंततः  हम  सब ,
मगर  समझ  नहीं  पाते कि , 
हम  तो  आखिर  इंसान  हैं  ना ,
फिर  जीवन  उन  कीड़ों  से  हट  कर  क्यूँ  नहीं  जीया  ?

चलो  आज  से  बजाय  खिड़कियों  पे  परदे   लगाने  के ,
खिड़कियों  के  बाहर की  दुनियाँ  को  साफ़  करते  हैं !
दूसरों  के  खिलाफ़  नहीं  ,
आज  से  खुद  ही  के  ख़िलाफ़  ज़ेहाद  करते  हैं !
जीवन  निश्चित  है  फिर  मौत  भी  निश्चित , 
चलो , जी  चुके  गर  नफरत  से , तो  प्रेम  से  मरते  हैं !
किसी  ने  चुटिया  दी  लंबी ,
किसी  ने  टोपी ,
तो  किसी  ने पगड़ी !
याद  रखो , जरुर  बच्चे  ही  इक  दिन  पूछेगें ,
कि , इंसानों  का  वेश  क्यूँ  नहीं  दिया  ?? 







        






Sunday, July 7, 2013

तनु थदानी की कवितायें कायर नहीं हूँ मैं tanu thadani ki kavitaayen kaayar nahi hun main

रूप  बदलती  नायिका  ने, 
पूरी  कहानी  का  ही  रूप बदल डाला ,
मगर उसी  कहानी  में  अछूता  बचा  मैं !
मैं  खुद  अपनी  प्रेम- कथा  के  निर्वासन  का , 
बन  गया  इकलौता  गवाह  इस  पार !

नहीं   मानी  जायेगी  मेरी  गवाही ,
सभी  मेरी  प्रेम-कथा  को उपस्थित  मान  रहें  हैं !
कुछ  भी  तो  नहीं  बदलता  है ,
जब  साफ़- सुथरे  शरीर  की  आत्मा  मैली  हो  जाती  है ,
मुस्कानों  से  मासूमियत  खो  जाती  है !
मैं  अपनी  प्रेम- कथा  से  खुद  को  अलग  कर  रहा  हूँ ,
मगर  अलग  नहीं  कर  पाऊँगा  प्रेम  को !

विश्वासों  में   घातों  का  प्रचलन  क्यों  मान्य  है ?
विश्वास  हो  तो  हर  इक  मान्यता  रद्द   हो  जाती  है !

हे  ईश्वर !
तुझमे  बसा - रचा  मैं  ,
तुम  तक  लौट  आने  को  हूँ  तैयार  !
खारिज़  करता  हूँ  अपने  आवरण  को ,
कायर  नहीं  हूँ  मैं ,
देखो ! कैसे  कमल  बन  गया  मैं , तुम  पर  ही  अर्पित  होने  को , 
मगर  कीचड़  से  तो  नहीं  कर  सकता  प्यार  !!