Saturday, January 3, 2015

tanu thadani kaash तनु थदानी काश

तारीखें पिघल जाती हैं ,
ओस अपनी मुठ्ठीयों में दबाती है एक सच
जिसे नहीं देख पाते हैं हम!

दो चोटियां करने वाली चुलबुली बहन ने
आज सालों बाद मांगी वो ही तारीखें
भाई उसकी उजड़ी मांग को हथेलियों से ढ़क कर सहलाता है ,
सुबुकती आंखो को उससे छिपाता है,
काश! खरीद पाते पैसों से ओस की कुछ बूंदे ,
वो सुबह का लम्हा
वो तारीखें जो कभी पिघलती नहीं !

जिंदगी के दरवाजे पर सांकले नहीं होती,
हमें बस धकेलना है हथेलियों से अपनी ,
मैं दाखिल हो चुका हूं,
पुकारता हूं सब आओ ना !
 वो तिल तिल कर घुल रही है हवा में ,
कोई मेरी बहन को समझाओ ना !

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