Wednesday, November 25, 2015

tanu thadani तनु थदानी महज़ हवा ही तो हूँ मैं

शीर्षक का एक अनुबंध होता है
 कथानक के साथ ;
शीर्षक चुपके से बता जाता है -
कथानक का सारांश !

मैं तुम्हें हमारी प्रेम कथा का शीर्षक बनाता हूँ
 खुद सरल सारांश के लिये
 एक कथानक बन जाता हूँ !

मेरे कथानक के आंगन में
 बाबू जी हैं ;अम्मा है ;और बच्चे हैं !
मेरे कथानक की छत पे
 कड़ी धूप में सूखते
 हमारे प्रेम के किस्से हैं ;
वो हमारे परिवार के ही हिस्से हैं
 बेशक उबर -खाबड़ हैं
 फिर भी अच्छे हैं !

तुम रसोई घर में खाना बनाती हो ;
कपड़े धोती हो ; घर सजाती हो ;
परदे लगाती हो फिर मेरे पास आती हो !
मैं घटनाओं सा पसर जाता हूँ
 महज हवा ही तो हूँ मैं
 मगर तुम तो हो मेरी सांस !

जितना आसान है होता बनना कथानक
 उतना कठिन होता है चुनना एक शीर्षक !
बेहद सुखद होता है
 किसी शीर्षक का स्वत: चुपके से
 बनना कथानक का सारांश  !

हाशिये तक खाली नहीं रहें कथानक के पन्नों के ;
बाबू जी और अम्मा ने लिख दिया था वहाँ
 कि कथानक और शीर्षक दोनों ही अच्छे हैं !

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