बूंद बूंद कथानकों में
फंसती हैं जीवित कथाऐं !
जब मात्र कमाने के लिए पढ़ते हैं बच्चे,
पढ़ लिख कर कमाते हैं सिर्फ पैसे,
घुटने टेकती है उम्र तब पैसों के आगे,
अनवरत बहते जीवन पर ,
तैरती रहती हैं व्यथायें !
कभी आना मिलना अपने सूखे से दिल से,
कभी बतियाना अपने ख्वाबों से ,
थोड़ी सी खुशियाँ भी कमाना ,
कभी माँ के पास भी आना ,
इससे पहले कि माँ कहीं गुम हो जाये ,
इससे पहले कि कोई तुमसे सहानुभूति जताये !
ये कोई कविता नहीं है
नहीं है कोई कथा ,
विवशता लिखी है परदेशी की ,
सूत्रधार अचंभित है,क्या छोड़े ?क्या बताये??
----------------- तनु थदानी
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