धूप की टक्कर से लहुलुहान अपाहिज छांव !
नहीं है शहर में तेरा कोई ,
आना मेरे गांव ,
आज भी मेरे गांव में ,
जब मरता है कोई ,
रोता है गांव समूचा !
बचपन आज भी जीवित है यहाँ ,
आ के देखो तो सही ,
बारिशों में आज भी नजर आयेगी यहाँ कागज की नाव !
आज भी यहाँ दादी दादा नजर आते हैं ,
आज भी जिंदा है यहाँ ननिहाल ,
पंक्षी कंधों पे बैठ इतराते हैं ,
मिल जाता परिंदा हर डाल !
यहाँ हर तरफ परिवार ही परिवार ,
मत पूछो घर है कहाँ ??
देखो तो पूरा शहर घरों से पटा पड़ा है ,
मगर परिवार लापता है !
घूमता है पूरा शहर दिन भर इधर उधर ,
गन्तव्य है नहीं कहीं ,
फिर भी चलते क्यूँ हैं नहीं पता है !
यहाँ गांव में धूप से नहीं होगी टक्कर ,
आ के देखो तो सही ,
वही धूप यहाँ सहलायेगी तेरे पांव !!
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