Tuesday, May 21, 2013

तनु थदानी की कवितायें हमें लौटाने होंगे परियों के पंख tanu thadani ki kavitaayen


जब  सम्भोग  हमारे  प्रेम  का  परिचायक  बन  जाता  है ,
हम  वही  रहते  हैं ,
प्रेम  भी वही  रहता  है ,
मगर  दिल   से  इक  समुन्दर  बहता  है ,
जिसमे  नहा  कर  हमारा   वजूद   खारेपन  से   सन  जाता  है !

परियाँ   अलग   कहीं  नहीं  रहतीं ,
वो  हमारे  जेहन  में  रहतीं  हैं !
हमारी  सोच  में  मसली  जाती परियाँ ,
कराहती  हैं , छटपटाती  हैं ,
मत  काटो  हमारे  पंख  , बस  यही  कहतीं  हैं  !
आखिर  हमारे  ही  हाथों  से  किया  गया ,
हमारी   आँखों  को  नज़र  क्यूँ  नहीं  आता  है  ?

शरीर  लिपटता  है  शरीर  से ,
शरीर  के  साथ  शरीर  सोता  है ,
जब  हम  बिस्तर  पे  होते  हैं ,
तब  प्रेम  ज़मीन  पे  होता  है  !
अंततः  कहानी  ये  होती  है ,  कि ,
ना  हम  हो  पाते  हैं   सम ,
ना  दिल  कुछ  भी  भोग  पाता  है !

हमें  लौटाने  होंगे  परियों  के  पंख ,
तभी  वो  जेहन  से  निकल  हमारे  सामने  आयेंगी !
हमने  ही  प्रेम  को   सम्भोग  का  मोहताज   बनाया  है ,
सच  ये  है  की  , जीवन  की  तमाम  बारीकियों  को  मात  देता  प्रेम ,
हमारी  -  तुम्हारी  आँखों  से  ही  छन  जाता  है !!







     

Saturday, May 18, 2013

तनु थदानी की कवितायें , चलो पुराना संदूक खोलते हैं tanu thadani ki kavitaayen chlo puraana sanduk kholte hain


वो  तो   नींद  से  भी   लंबा  सपना  था ,
जिसमे  पिता  के  मुंह  पर ,
थूक  का  सैलाब  फैला  था ,
जिसमे  बेटी  पिता  की  गोद  में  जाने  से  कतराती  है ,
कि  , पिता  उसे  छूता  है  तो  उसे  डर  लगता  है , सहम  जाती  है !

नेपथ्य  में  असंख्य  पीड़ाओं  की  कथाएँ  हैं ,
मगर  आगे  नाटक  कुछ  और  चल  रहा  होता  है !
दर्शक  चुपचाप  बैठे  देखते  हैं ,
सुनते  हैं  पर  समझते   नहीं हैं ,
कि  खिलखिलाहट  के  शोरगुल  के  पीछे  भी  कोई  रोता  है ! 

जब  शर्म  एक  इतिहास  बन  जाती  है ,
तब  बेटियां  अपने  ही  घरों  में ,
अपने  कमरों  में  दरवाजे  की  छिटकनी  लगा  कर सोती हैं !
क्यूँ  हमने  सतह  छोड़  दी ?
क्यूँ  डूब  रहे  हैं  हम ??
ये  सैलाब  आया  कहाँ  से ???
ये  तो  आँसू  हैं  बेबसी  के ,
ध्यान  से  देखो -आज  पूरी  सदी  रोती  है  !!

चलो  पुराना  संदूक  खोलते  हैं ,
वही  पुरानी  किताब  निकालते  है,
पढ़ते  हैं  वही  कहानी  फिर  से ,
जिसमे  बेटियाँ  परियों  की  कहानियाँ  सुनती  हैं ,
पिता  की  बाहों  में  झूलती  हैं ,
बेधड़क  पिता  के  कन्धों  पे  चढ़  जातीं  हैं ,
फिर  गिरतीं  हैं - रोती  हैं 
सुबुकती  अनवरत  रोती  बिटिया  को  चुप  कराते - कराते ,
यकानक हँसते  हुये  पिता  की  आँखे  भर  आती  हैं  !!
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Friday, May 10, 2013

तनु थदानी की कवितायें - सोचों tanu thadani ki kavitaayen socho

हँसती  -  खेलती  - मुस्कुराती ,
चमकते  दांतों  वाली  लडकियां ,
हमारे  वजूद  का  हिस्सा  हैं  !

गुलाब  जामुन  में ,
ना  तो  गुलाब  होता  है 
ना  ही  जामुन ,
फिर  भी  मिठास  का  झोंका  है !
खाते  हम   सभी  हैं ,
मगर  दुष्प्रचार  करते  हैं  कि  नाम  में  धोखा   है !

हमारे  घरों  के  दालानों  में ,
छतों  पर  , खिड़कियों  पर ,
चहल- पहल  करतीं , हँसती  - खिलखिलाती  लड़कियां ,
वही  मिठास  हैं ,
जो गुलाब  औं  जामुन के नामों  में  गुम  हैं !
घर  की  दहलीज़  के  बाहर ,
इन्ही  मिठास  पर ,
जहरीली  चींटियाँ  बन  कर चिपकने  वाले ,
हम  और  तुम  हैं !

हमें  कभी  तो  दूसरों  के  बालों   का  स्टाईल  पसंद  नहीं  आता ,
कभी  दूसरों  का  चलना - फिरना , बातों  का  अंदाज़  नहीं  भाता !
हम  ना  तो  आईना  देखते  हैं ,
ना  ही  रखते  हैं ,
फिर  भी  खुद  को  समझदार  कहते  हैं  !

खुद  की  कुदृष्टि  खुद  पे  डालते  हैं ,
फिर  बड़ी  चालाकी  से  मानते  हैं ,
कि  ये  तो  हर  घर-घर  का किस्सा  है !!

सोचों  !
जिस  दिन  खो  जायेगी  मिठास ,
उस  दिन  ना  तो  गुलाब ,
ना  ही  जामुन ,
अपने  नामो  से पसंद  आयेगा ,
तुम  दूसरों  के  चेहरों  को  नापसंद  करते  हो  ना ?
तुम्हारा  भी  चेहरा एक  दिन  तुमको ,
बेखौफ   हो  कर  चिढ़ायेगा !!



 







Wednesday, May 1, 2013

तनु थदानी की कवितायें बेशक हम समझदार हैं tanu thadani ki kavitaayen beshak hum samjhdaar hain,

नहीं  था  कोई  विकल्प ,
सिवाय  चुप  रहने  के !

केवल  देखो  मेरे  जख्मों   को ,
ना  छूना - ना   बाँधना ,
सूखने   तक   खुला  रखुंगा  इसे ,  वरना  दर्द  बिखर  जायेगें  !

इतने  सारे  जख्म मेरे  वज़ूद  पर  आये  कैसे , मत  पूछना ,
ना  जाना  गहराइयों  में ,
मेरे  कुछ  अपनों  के  चेहरे  उतर  जायेंगे !

प्रेम  के  नाटक  में  मर गया  कलाकार ,
मगर  किरदार  ज़िंदा रहा !
वो  तो बहाना  था , कि  आँखों  में  कुछ गिर  गया ,
कारण  अनेक  थें  आंसुओं  के  बहने के ,
जो  हम  कभी  नहीं  बतायेंगे  !

दुनियादारी  की  आड़  में  छिपते  लोग ,
नहीं   बन  पाते  मित्र ,
मेरी  मानो ,  दुनियाँ  में  अपने  क़दमों  से  चलना ,
नहीं  तो ,
कंधों  पे  उठा  के  घुमाने  वाले ,
कहीं  भी  पटक  आयेंगे ,
दुनियाँ  ऐसे  ही चलती  है , पूरी  बेशर्मी   से  समझायेंगे !

बेशक  हम समझदार  हैं ,
पूरी  समझदारी  दूसरों  को  खुश  रखने  में  लगाते  हैं ,
कार्य  सिद्ध  नहीं  होने  पर नाराज हैं  होते ,
ऐसी  समझदारी के  साथ ,  हम  खुश  कैसे  रह  पायेंगे ?

चलो  !  खुश  रहने  के  लिये  कुछ  ऐसा  करते  हैं ,
दिल  पे  जख्म  देने  वालों  के नाम ,
दिल  में  दफ्न  करते  हैं !

कोई  लिखेगा  - कोई  बजायेगा - कोई  सुनेगा ,
तभी  तो  हम  गायेंगे ....
क्यूँ  न  यूँ  मिलें  सबों  से ,
ज्यों  कल  हम लौट  के  ना  आयेंगे  !!