मैं शायद नहीं रोता ,
अगर किसी ने मेरा हाल ना पूछा होता !
कुछ टूटे- फूटे सपनों को तकिया बना जागता हूँ ,
किसी की नर्म अँगुलियां ,
मेरे बालों को सहलाती , तो मैं भी सोता !
मेरी नन्ही सी जिन्दगी ,
मेरे सीने से लिपट फुसफुसाती है ,
कि , उसे यहाँ डर लग रहा है ,
जरुर मेरा घर एक जंगल है ,
वरना मैं खुद के ही घर में क्यूँ यूँ खोता ?
किसी के आगमन पर ,
कोई खामोशी का नगाड़ा बजाता है भला ?
भाव तो नग्न कर दिये थे अपनों ने ,
किसी ने शब्दों को ही कपडा बनाया होता !
नहीं समझेगा कोई ,
कि मैं बातें किससे कर रहा हूँ ,
तुम तो मेरे अन्दर हो ,
काश ! जमीन मिल जाती मेरी बिटिया ,
जहां मैं तुझे बोता !!
अगर किसी ने मेरा हाल ना पूछा होता !
कुछ टूटे- फूटे सपनों को तकिया बना जागता हूँ ,
किसी की नर्म अँगुलियां ,
मेरे बालों को सहलाती , तो मैं भी सोता !
मेरी नन्ही सी जिन्दगी ,
मेरे सीने से लिपट फुसफुसाती है ,
कि , उसे यहाँ डर लग रहा है ,
जरुर मेरा घर एक जंगल है ,
वरना मैं खुद के ही घर में क्यूँ यूँ खोता ?
किसी के आगमन पर ,
कोई खामोशी का नगाड़ा बजाता है भला ?
भाव तो नग्न कर दिये थे अपनों ने ,
किसी ने शब्दों को ही कपडा बनाया होता !
नहीं समझेगा कोई ,
कि मैं बातें किससे कर रहा हूँ ,
तुम तो मेरे अन्दर हो ,
काश ! जमीन मिल जाती मेरी बिटिया ,
जहां मैं तुझे बोता !!
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