Thursday, February 28, 2013

तनु थदानी की कवितायें - मैं तुमसे प्यार करता हूँ tanu thadani ki kavitaayen main tumse pyaar karta hun

मैं   नफरत  करता  था  तुमसे, 
मगर   गणित  के  किसी   भी  सूत्र    से ,साबित   नहीं  कर  पाया !
वफ़ा  के  घटने  के  बावजूद ,
सिद्ध  नहीं  कर  पाया  नफरत !

मगर 
बारहवीं  में  पढ़े  तर्कशास्त्र  ने 
आज  सिद्ध  करवाया  मुझसे 
कि  मैं  तुमसे  प्यार  करता  हूँ  !

हाँ !  ठीक   सुना  तुमने ,
मैं  तुमसे  प्यार  करता  हूँ ....
क्यों  कि  तुम  मेरी    माँ  से  प्यार  करती  हो,  
और  मैं   अपनी  माँ   से  प्यार  करता  हूँ , बहुत  प्यार  करता  हूँ  !
इसीलिये  स्वत :  सिद्ध  है 
कि  मैं  तुमसे  प्यार  करता  हूँ !!

Thursday, February 21, 2013

तनु थदानी की कवितायें - कब आओगी तुम tanu thadani ki kavitaayen kab aaogi tum

तुम   हमेशा  मेरी  नींद  में  प्रस्तावित  हो !
खुली  आँखों  में   तो  होते  हैं  हम ,
जिस्म   के पहरों  में ,
क्या  तुम   समझ   पा  रही  हो 
जिस्म   से परे  इश्क  को  ?
अगर  हाँ,  तो 
मैं  सिखाऊंगा  तुम्हे ,
दुःख  रहित  जीवन  जीने  का सलीका ,
जहां  हम  पूर्णत  वजूदहीन  हो  कर   करते  हैं  प्रेम ,
जहां   आनंद  के  लिये  वर्जित  होगा  जीना  ,
हाँ ! आनंद  से  जीने  के  लिये  आमंत्रित  होंगे  सब !

कब  आओगी  तुम  ?
चलो  छोड़ो ,
तुमने  तो  इर्द - गिर्द  बसाया  है  परिवार ,
जहां  तुम  सबो  के साथ ,
सब तुम्हारे  साथ ,
गुंथे  हुये  हैं अपनी - अपनी  जरूरतों  के  लिये !

आनंद  से  जीने  के  लिये  कोशिश  करती  हो ,
मगर  जी  नहीं  पाती  हो  ना ?
क्यों  तुमने  सात  फेरे  ले  कर ,
मुझे  इस्तेमाल  किया केवल  एक  रिश्ते  के  रूप  में ,
फिर  मुझे  दूरियों  के साथ  किया  अस्वीकार !

विश्वास  करो  मैं  दूर   जरुर  हूँ ,
मगर  मेरी  बाहों  के  घेरे  में ,
केवल  तुम  और  केवल  तुम  ही  पारित  हो !
आना  जरुर   मेरे सपनो  में  प्रिय ,
क्यों  कि  तुम  हमेशा  मेरी  नींद  में  प्रस्तावित   हो !








Monday, February 18, 2013

तनु थदानी की कवितायें - काश tanu thadani ki kavitaayen - kaash

मैं  शायद   नहीं रोता ,
अगर  किसी   ने  मेरा   हाल ना  पूछा  होता !

कुछ  टूटे- फूटे  सपनों   को  तकिया  बना  जागता  हूँ ,
किसी  की  नर्म  अँगुलियां ,
मेरे  बालों  को  सहलाती , तो  मैं  भी  सोता !

मेरी   नन्ही सी  जिन्दगी ,
मेरे  सीने  से  लिपट  फुसफुसाती  है ,
कि  , उसे  यहाँ  डर   लग  रहा है ,
जरुर  मेरा   घर  एक  जंगल  है ,
वरना  मैं  खुद   के  ही  घर  में   क्यूँ  यूँ  खोता ?

किसी  के  आगमन  पर ,
कोई  खामोशी   का  नगाड़ा   बजाता  है  भला ?    
भाव  तो  नग्न  कर  दिये  थे  अपनों  ने ,
किसी  ने  शब्दों  को   ही  कपडा  बनाया  होता  !

नहीं  समझेगा  कोई ,
कि  मैं  बातें  किससे  कर  रहा  हूँ ,
तुम  तो  मेरे अन्दर  हो ,
काश ! जमीन   मिल  जाती  मेरी  बिटिया ,
जहां  मैं  तुझे  बोता !!     





  

Friday, February 15, 2013

तनु थदानी की कवितायें -मूलतः ठग हैं हम tanu thadani ki kavitaayen - multah thag hain ham

अदभुत  शैली  के  ठग  हैं  हम ,
जो  सर्वप्रथम  स्वयं  को  ठगते  हैं !

योग्यता  के  बाजार   में  
खुद   को  बेच  कर   खुश  होना ,
गैर   जरुरी  मसौदों  को  
पूरे जीवन  सिर  पे   ढोना, 
किसी  जंगली  जानवर  के  लगभग  हैं  हम !
हम  जानते  हैं  कि  ठग   हैं  हम !!

अपने  बच्चों  के  समक्ष ,
चरित्रवान   होने  का  ढोंग  करते - करते
हम   ना  कभी  ऊबते   हैं  ,
ना  थकते   हैं ,
यूँ  ही  पीढ़ियों  से  
आदतन  ही  इक  दूसरे  को  ठगते  हैं !
जीवन  की  अंगूठी  में  ज्यों  नकली सा   नग  हैं  हम ! 
हम  खुश  हैं  कि  ठग  हैं  हम !!

रिश्तों   में  भी   लाभ- हानि   का  गणित  बैठाते  हैं ,
बूढ़े   होते माँ  - बाप की  उपयोगिता  पर  दिमाग   लगाते है ,
दिमाग  की  दिल  से  सांठ - गांठ को रोकते   हर  पग हैं  हम !
क्यों  कि  मूलतः  ठग  हैं  हम !!

तनु थदानी की कवितायें - मैं नहीं हूँ पागल - tanu thadani ki kavitaayen main nahi hun paagal

कई   दिनों  से   देख  रहा  हूँ 
तुम  खोज    रही  हो  मुझे 
अपनी  पर्स  में !
टटोल   रही  हो  मुझे 
ए  टी  एम   कार्ड   में !
एक   बार   आलिंगन  में झांक   लिया  होता ,
शायद   मुझे  महसूस   कर  पाती !

ढ़ेर   सारी  शिकायतों  को  उढेल  कर   मुझमे 
एक  शिकायत   शेष   बता रही  हो  कि 
मैं  क्यों   बन  गया डस्टबीन  ?

सच   कहूँ  
मैं  तो  बनना   चाहता   था  गमला 
काश  !  एक   पौधा   फूलों  का  लगा  कर  देखा    होता मुझमे  !

मेरी   कल्पना  में 
तुम   होती  हो  एक   बहुत  बड़ा  समतल सा  खेत 
मैं   हल  सा  तुम  पर  चल  रहा   होता  हूँ -
सुन्दर- सुन्दर  फूलों  के  बगीचे  की   आशा में  !

यूँ    मत  हँसो  मुझ  पर 
मैं  नहीं  हूँ   पागल 
जिस  दिन  हो  जाउंगा   पागल 
 उस  दिन  रो  भी  नहीं  सकोगी तुम  !!




तनु थदानी की कवितायें - मुझे विश्वास है tanu thadani ki kavitaayen- mujhey vishwaas hai




हम  अपने   व्यक्तिगत  होते  परिचय   को 
मान  बैठते  है  उपलब्धि  !

बच्चे    के  जन्म  के   साथ  मिठाइयाँ   बांटने 
और   किसी  परिचित  की  मौत  पर   रो लेने  की  प्रक्रिया  से 
हम   खुद को   मानव  साबित   कर  बैठते  हैं  !
क्यों    नहीं  रोती  आँखे   अपरिचित  की  मौत  पर ?
क्यों   हमारे    खुश  होने  के  मापदंड   भी  पहले से  तय  होते  है  ??

ता  उम्र  बिखराते  चलते   हैं  सजीव- निर्जीव  संबंध  एवम  साधन 
नहीं  समेट    पाते  अंतत :  !  

चलो   प्रिय  !
दिमाग  की  दीवारों  को  खुरचें 
पूरा   मवाद   निकलने    तक  खुरचें 
मुझे   विश्वास   है 
पूरा  मवाद  निकलने  पर   ही हम  सामान्य  हो  पायेंगे 
और  सामान्य     होना  ही तो   होगी   हमारी  उपलब्धि  !  

तनु थदानी की कवितायें , तुम आना जरुर tanu thadani ki kavitaayen - tum aanaa jarur .




मेरी   आत्महत्या  में 
आमंत्रित   हो  तुम  
क्यों  कि 
मेरी  आत्महत्या  तो   विस्तार  है   तुमसे  नफरत  का !
तुम   आना   जरुर ,
तभी  तो  एक  बार 
मेरे  शरीर   से  मुझे  अलग   होते  महसूस  करोगी !

क्या    फर्क  पड़ेगा  तुम्हे 
मुझे  नहीं  मालूम 
पर   मैं  जरुर  मुक्त  हो  जाउंगा  नफरत   की कड़ियों  से !

क्यों    हम   जीते   हैं   प्रेम  के  लिये  ?
प्रेम   से  क्यों  नहीं  जी  पाते  ??
प्रेम  के  लिये   जीने  में  शामिल    होती है  जिद 
मगर  प्रेम  से  जीने  में   चाहिये  मात्र  समर्पण !

मैं   फिर  कभी नहीं  मिलुंगा 
ना   शरीर  से ,   ना   याद से   ,
छूट  जायेगी  तुम्हारे  इर्द- गिर्द 
मेरी  तड़प , मेरी टीस  ,एक ना उम्मीदगी  ,
साथ  में  अकेलेपन   का गहरा  समुन्दर  !

तुम  आना  जरुर  
मेरी   आत्महत्या  तो  एक  जश्न   होगी  
मेरी   आत्महत्या     में  मैं   तो  जीवित   रहूंगा 
मेरे  भीतर  केवल तुम  मरोगी  !