Wednesday, November 25, 2015

tanu thadani तनु थदानी हम और तुम

फिर मिलेंगे
 कहते हैं विदा होने से पहले
 कितने आशावान हैं हम और तुम !

बेवकूफियों के अस्तर लगी जिंदगी जीते हैं ;
कल का नहीं पता
 मगर अगले कई सालों की रूपरेखा में हैं उलझे ;
हरे से लाल हैं होते
 कि जैसे पान हैं हम और तुम !

हमारे जिस्म के भूगोल का
 इतिहास बनने का गणित
 पूरा दर्शन शास्त्र है !
घड़ियां तो आईना होती हैं
 टिक टिक कह कह
 नहीं टिकती हैं खुद
 न देती हैं टिकने ;
बताती हैं -
इसी परिपथ में घूमना ही जीवन मात्र है  !
तुम मुझमें
 मैं उतरता हूँ तुझमें
 खोजते हैं जीने को प्यार के पल ;
कैसे मान लू्ं कि मात्र सांसों की खान हैं हम और तुम !!

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