मेरी खामोशी है मेला कुंभ का ,
जहां बहुत कुछ छूट जाता है,खो जाता है !
मेरी खामोशी है धरातल चाँद का ,
जहां नहीं है गुरुत्वाकर्षण !
जब कभी उतरता हूँ
अपनी खामोशी में,
हो जाता हूँ वजनहीन ,
गोया भार कहीं सो जाता है !
मेरी खामोशी है फुटपाथ,
पूरी चहलक़दमी,
नहीं ठहरता है कोई,
न ही कोई किसी का हो पाता है !
करोगी दोस्ती मेरी खामोशी से ?
शर्त है ; ढेरों बातें करनी होंगी !
मैं कभी चुप नहीं रहता अपनी खामोशी में ;
मगर देखो ना ;
हर वो हो जाता है निरंतर चुप ;
जो मेरी खामोशी में उतर दाखिल हो जाता है !!
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