हे ईश्वर !
तुम्हारे द्वारा दिया गया आँखों का पानी ,
कभी नहीं बहाया मैंने आंसू बना कर ,
सुरक्षित रखा इक शर्म के लिए मात्र !
हे ईश्वर !
मैं सच कहता हूँ
हर घर से विसर्जित होती नालियों में
मैंने वो ही पानी देखा
अन्दर हर घर के उस शर्म को बेशर्म होते देखा !
काश !
मैं तुम्हारे लिए खुद को सुरक्षित रख पाता !
जैसा तुमने भेजा था निर्मल और स्वच्छ ,
वैसा तुम तक लौट पाता ....................
हाँ !
मैं केवल तुम्हारा आलिंगन चाहता हूँ ,
मगर अभी नहीं !
मुझे अपने ऊपर लगाए तमाम कीचड़ साफ़ करने की क्षमता दो ईश्वर ,
जिस -जिस ने भी मुझे कीचड़ लगाया ,
उनके हाथ भी साफ़ करना ईश्वर ,
ताकि जब भी वो तुमसे क्षमा मांगने हेतु हाथ जोड़े ,
तो कम से कम हाथ साफ़ व स्वच्छ हो उनकें !
मैं नहीं जानता हे ईश्वर तुम्हारे निराकार में समाहित आकार को ,
अगर जानता तो उस आकार में तुम्हारी गोद ख़ोज लेता ,
जहां मैं दुबक कर - सिमट कर बैठता ,
और तुम्हारे हाथों का स्पर्श सर पे महसूस करता !!
तुम्हारे बारे में लिखे पुराण और कुरआन ,
दोनों को लड़ते रक्त- रंजित होते देखा ,
क्या ऐसा संसार मंजूर था तुम्हे ?
शायद नहीं ........
तभी तो सर्वज्ञ मानने के बावजूद ,
ये भी जानते हैं ,
कि तुम हो ही नहीं इस संसार में !
अगर होते तो ,
श्रृन्गारित होती हमारी आत्माएं प्रेम से !!
हे ईश्वर !
मेरा आमन्त्रण है तुम्हे -
आओ अपनी बनाई इस दुनिया में !
मगर किसी रूप में न आना ,
ना ही शब्दों और किताबों में आना ,
आना तो हमारी आँखों में पानी बन कर आना ,
जो संभाल रखे तुम्हे , उसी का हो के रह जाना !!
No comments:
Post a Comment