भूख को पकाता है ठंडे चूल्हे पर,
पढ़ाई छोड़ मुन्ना कमाने की आदत डालता है ,
फिर रोता छाती पीटता है अपने नसीब पर ,
नहीं जानता कि उसका नसीब ही तो,
नेताओं को पालता है !
हम आज भी नसीब से ही खुशियाँ छानते हैं !
खाना खाने को भी इक भाग्य मानते हैं !
क्या खूब है जीने का तरीका मित्र ,
बिकते हैं पर कीमत भी नहीं जानते हैं !
हमें आ गया है करना व्यापार ,
खेत बेच चुके ,
अब रिक्शे के मालिक हैं !
कितने सलीके से आजकल रिक्शे पे ही सोते हैं !
हम वो सब करने को हैं तैयार ,
जिसमें हम मानव नहीं मशीन होते हैं !
सपने ओढ़ सोता पूरा हुजूम ,
आँखें खोलने को नहीं है राजी !
पूरा हिन्दुस्तान लटका है रात की सलीब पर,
सपने अच्छे हैं बस इसलिए हर कोई,
न आँखें खोलता है ,
ना ही कुछ बोलता है ,
खिड़की से आती धूप को ढ़केल ,
सर पे खड़ी सुबह को टालता है !!
पर मुझे नींद क्यूँ नहीं आती ?
जागता हुआ मैं इक तमाशा बनता हूँ ,
सोते लोग तमाशबीन होते हैं !
खेत से रिक्शे तक के सफर पर ,
संसद है मौन
शेयर बाजार भी कुछ नहीं बोलता है !
मेरी जिक्र की चौहद्दी में तो फिर भी वही मुन्ना है
जिसका पढ़ाई छोड़ना मुझे आज तक सालता है !!
पढ़ाई छोड़ मुन्ना कमाने की आदत डालता है ,
फिर रोता छाती पीटता है अपने नसीब पर ,
नहीं जानता कि उसका नसीब ही तो,
नेताओं को पालता है !
हम आज भी नसीब से ही खुशियाँ छानते हैं !
खाना खाने को भी इक भाग्य मानते हैं !
क्या खूब है जीने का तरीका मित्र ,
बिकते हैं पर कीमत भी नहीं जानते हैं !
हमें आ गया है करना व्यापार ,
खेत बेच चुके ,
अब रिक्शे के मालिक हैं !
कितने सलीके से आजकल रिक्शे पे ही सोते हैं !
हम वो सब करने को हैं तैयार ,
जिसमें हम मानव नहीं मशीन होते हैं !
सपने ओढ़ सोता पूरा हुजूम ,
आँखें खोलने को नहीं है राजी !
पूरा हिन्दुस्तान लटका है रात की सलीब पर,
सपने अच्छे हैं बस इसलिए हर कोई,
न आँखें खोलता है ,
ना ही कुछ बोलता है ,
खिड़की से आती धूप को ढ़केल ,
सर पे खड़ी सुबह को टालता है !!
पर मुझे नींद क्यूँ नहीं आती ?
जागता हुआ मैं इक तमाशा बनता हूँ ,
सोते लोग तमाशबीन होते हैं !
खेत से रिक्शे तक के सफर पर ,
संसद है मौन
शेयर बाजार भी कुछ नहीं बोलता है !
मेरी जिक्र की चौहद्दी में तो फिर भी वही मुन्ना है
जिसका पढ़ाई छोड़ना मुझे आज तक सालता है !!
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