हम प्यार करना क्यों नहीं सीख पाते ?
गवां देते हैं पूरी उम्र ,
शादी करते हैं ,
बच्चे होते हैं ,
और बूढ़े हो जाते हैं ,
फिर अफ़सोस करते हैं ,
कि , सब किया जीवन में , मगर प्यार क्यों नहीं किया ?
पहले घर लेते हैं ,
उसमे परदे - फर्नीचर लगाते हैं,
फिर रिश्तों के हिसाब से बने कमरों में ,
खुद को कैद कर पूरी खामोशी से चिल्लाते हैं ,
कि , हमने मकान क्यूँ लिया , घर क्यूँ नहीं लिया ?
करोड़ो कीड़ों - मकोड़ों के बीच ,
अपरिचित सी शक्ल लिये ,
जीवन गुजारते हम , हमारे दोस्त , हमारे अपने ,
मर जाते हैं अंततः हम सब ,
मगर समझ नहीं पाते कि ,
हम तो आखिर इंसान हैं ना ,
फिर जीवन उन कीड़ों से हट कर क्यूँ नहीं जीया ?
चलो आज से बजाय खिड़कियों पे परदे लगाने के ,
खिड़कियों के बाहर की दुनियाँ को साफ़ करते हैं !
दूसरों के खिलाफ़ नहीं ,
आज से खुद ही के ख़िलाफ़ ज़ेहाद करते हैं !
जीवन निश्चित है फिर मौत भी निश्चित ,
चलो , जी चुके गर नफरत से , तो प्रेम से मरते हैं !
किसी ने चुटिया दी लंबी ,
किसी ने टोपी ,
तो किसी ने पगड़ी !
याद रखो , जरुर बच्चे ही इक दिन पूछेगें ,
कि , इंसानों का वेश क्यूँ नहीं दिया ??
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