मैंने अपनी आवाज निगल ली है ;
लोग उसे ख़ामोशी कहते हैं !
आप ढूंढो चुपचाप सी चुप्पी में
एक आवाज ;
आप चुन लो चुपचाप सी चुप्पी से
एक साज !
पूरी पूरी आवाज में
और पूरे पूरे साज में भी
नहीं सुन पाओगे एक भी शब्द !
शब्द आवाज में रहते ही नहीं बंधु ;
शब्द तो आंखों में रहते हैं ;
लोग जिसे ख़ामोशी कहते हैं !
जिसने भी अपनी आवाज उगल दी
वो फंस गया जंगल की रात में !
नहीं जी, मेरा दिल कोई भारत की संसद नहीं है ;
नहीं बनाने कोई कानून मुझे शोर शराबो में ,
न खुद के लिये
न दूसरों के लिये !
मैं सुकून से हूँ
अपनी ख़ामोशी की बात में !
शब्द जो आंखों में रहते हैं
वही तो आवाज बन पाते हैं !
चलो ; आज से हम ख़ामोश रहते हैं !!