धत् पगली
मेरी मुस्कान एक अलमीरा है बहुत बड़ी,
भीतर आँसू हैं मेरे,
कभी देखा है मुझे रोते हुए ??
पूरी गृहस्थी को अनवरत ढ़ोता खींचता जाता हूँ ;
छिल जाते हैं कंधे , हाँफता हूँ ,रुकता हूँ ,
फिर मुस्कुराता हूँ !
धोखे में न आना ,
ये तो खुशी से हैं मेरी आँखें भरी भरी !!
गले मिलना कभी आ के,
तुम भी मुस्कुराओगी ,
मेरे कंधे गीले कर ,
चुपचाप चली जाओगी ,
पर मुझे नहीं बताओगी !
अजीब हैं न हम ,
करते कुछ हैं,
दिखाते कुछ हैं ,
हँसते बनावटी जरूर हैं ,
मगर रोते सचमुच हैं !
धत् पगली ,तू क्यूँ रोती है ;
मैं हूँ न तेरे साथ, हर क्षण, हर घड़ी !!