Thursday, April 17, 2014

tanu thadani तनु थदानी कुछ नहीं आयेगा हाथ तुम्हारे




कभी आना प्रिये मेरे घर भी ,
जहाँ मैं बिलकुल अकेला रहता हूँ साथ तुम्हारे !

मेरी अजन्मी बिटिया की चींखों से पटी दीवारें ,
ना छूना इन्हें ,
ये नम हैं आँसुओं से मेरी !

भीतर दालान में ,
उम्र की रस्सीयों पर सूख रहीं हैं यादें तुम्हारी !

आजकल मैंने दालान में बैठना ही बंद कर दिया !
तुम्हें मेरा जिस्म नजर आया ,
क्यूँ नजर न आयी  वो धुन ,
जो मेरी सांसो में किसी मासूम ने  छेड़ी !

नहीं रोक पाओगी ,
इक दिन यकायक ,
आ के मेरे सीने से लिपट जायेगी मेरी बिटिया !
तुम्हारी तमाम बंदिशों के बावजूद ,
वो शामिल होगी मेरी हंसी में इक दिन,
क्यूँ कि उसने मुझमें घुल के ,
कर ली है जीने की तैयारी !

कुछ नहीं आयेगा हाथ तुम्हारे ,
ना मैं , न मेरा जिस्म, ना रूह ही मेरी !!