खुश मत होना सखी
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जब स्त्री सौंपती है अपनी देह ,
तो वो केवल देह ही नही सौंपती ,
वो सौंपती है अपना पूरा अस्तित्व ,
पूरा विश्वास ,
और समूचा प्यार !
ऐसा क्यूँ है होता ,
समुंदर मीठी नदी को समाहित कर के भी ,
हो नहीं पाता मीठा ,
अकड़ता , उफनता , शोर शराबे से लबालब ,
हर अदा है , मगर मीठेपन से लाचार !
केवल सात फेरों से ,
बंध जाती है पूरी नदी ,
मगर नहीं बांध पाती वो समुंदर को ,
अपने संपूर्ण समर्पण से भी !
डूबती उतरती जा रही अनवरत ,
कई सदियों से उसी समुंदर में ,
होती है विलीन चुपचाप ,
क्यूँ हर बार उसी में है खो जाने को तैयार ?
रात के दरवाजे से जब दबे पांव भीतर आयेगी सुबह ,
खुश मत होना सखी ,
सुबह आते ही उस रात को खा जायेगी ,
पूरा बरामदा उसकी उल्टियों से भर जायेगा !
अजगर तो बस मुस्कुरायेगा ,
डरी सहमी गौरेया अपने ही घोंसले में ,
बच्चों को डैनों में समेटे छटपटायेगी !
कभी समुंदर , कभी अजगर , केवल पात्र बदलेगा ,
किस्मत नहीं बदलेगी , न नदी की न गौरेया की
किस्सा भी वही रहेगा हर बार !!