Thursday, December 4, 2025

We are con artists with a remarkable style,

We are con artists with a remarkable style,
We are con artists with a remarkable style,
who first deceive ourselves!

In the market of talent,
we delight in selling ourselves,
In the market of talent,
we delight in selling ourselves,
carrying unnecessary burdens
our entire lives,
we are like wild animals!
We know we are con artists!!
We are con artists with a remarkable style,

In front of our children,
we pretend to be virtuous,
never get bored,
never get tired,
for generations,
we have habitually deceived one another!
Like a fake gem in the ring of life!
We are happy that we are con artists!!
We are con artists with a remarkable style,

We calculate profit and loss even in relationships,
we ponder the usefulness of aging parents,
we are at every step preventing
 the mind from colluding with the heart!
Because we are, at our core, con artists!!
We are con artists with a remarkable stylestyle
----------------------------- Tanu Thadani

Saturday, October 18, 2025

शातिर दिमाग से खेलते हैं

शातिर दिमाग से खेलते हैं
शातिर  दिमाग  से  खेलते  हैं ,
नादान   दिल  से  खेलते   हैं ,
बेवकूफ  शरीर  से  खेलते  हैं ,
हम  खुद  के  भीतर  भी
इन  तीनो  स्थितियों  को
अपनी  मृत्यु  तक  झेलते  है !


हम  नहीं  हैं  किसी  भी  पशु  के  विकास - यात्रा  के  यात्री
हमने  खुद  के  भीतर   पशुता का  विकास  किया  है !
बेहतर हैं  पशु  हमसे
कि स्पष्ट  है  उनका लक्ष्य -भोजन ,
मगर  हमारे  लक्ष्य तक  नहीं  हैं  निश्चित !


हम  कपड़े  ओढ़  कर  शर्मिन्दा  हैं ,
मृत  भावनाओं  के  साथ  ज़िंदा  हैं ,
भीड़  मे  अकेलेपन  के  साथ  हैं ,
अकेलेपन  में  यादों  से  खेलते  हैं !
मात्र  साँसों  से  दोस्ती  के  लिये ,
रोज नया  आवरण , खुद  के  ऊपर  बेलते  हैं !


हे  ईश्वर  !
क्यूँ  है  हमारी  जीवन - यात्रा   अनिश्चित  ?
क्यूँ   हमारे  साथ   चलती  एक  निन्दा  है ?
क्यूँ  हैं  बनाते खुद  के  भीतर  खाई  अहंकार  की ?
आखिर क्यूँ  खुद  ही  को  उसके  भीतर  ढकेलते  हैं ??
-----------------------------  तनु थदानी

Friday, October 17, 2025

असंभव होती हमारी जागरूकता

असंभव   होती  हमारी  जागरूकता 
हमारी   नीयत    के खोखलेपन  का  सबूत  है !

कुकुरमुत्ते   की  मानिंद  उगी  टोपियों  की  जड़ 
यकानक  राजनीतिक   क्यूँ हो   गई ?
हमारे  बच्चे  की  भूख  तो  सामाजिक   थी ना 
फिर  क्यूँ  बन  गई  नारा ?
अनशन  हुयें  , हड़ताल  हुई  ,समझौते  हुये ,
खिलाड़ी  अपने   खेल से  पुर्णतः  संतुष्ट  थें कि 
किसने   किसका  खेल  बिगाड़ा !

कल   फिर  वोटिंग  होगी 
नहीं मालूम  कौन  जीतेगा ,
पर मालूम   है  की  हमारी   हार होगी !

खूब    घूमते  हो  ना ,
कभी  खुद  के  पासपोर्ट  पर 
अपने  दिल  का  वीजा  लो 
पूरी यात्रा  में  निः शुल्क  है  आना- जाना 
बस  एक  निवेदन  है -
यात्रा  में   अगर  भारत  नजर  आये  
तो  उसे  जरुर   बाहर  लाना !!

हमने बड़े करीने से

हमने  बड़े  करीने  से  
सजा  रखी  हैं  अपनी  दूरियाँ !

कभी आत्ममुग्धता  की  छत  पे 
अकेले  बैठे लाखों - करोड़ों  तारों  को  देखते  हैं 
कभी नीचे  आ लाखों - करोड़ों  के  हुजूम के जश्न   में  हो जाते  है  शामिल 
लेकिन  कोई  नहीं  होता  किसी  के  साथ !

दिल से  निः हत्थे  हम 
हँसते  - रोते  हैं  नाप - तौल  कर ,
 क्या कोई   बता  पायेगा  कि   जाना  कहाँ  है ??

दोमुहें  पैजामे  को  तर्कों  की  डोरी  से  बाँध 
पूरी  करते  हैं  जीवन-  यात्रा !
मुहावरे  सा  व्यक्तित्व  ले  कर  जीते  है 
छोड़  जाते  हैं  दुनिया  से  विदा   होने से  पहले 
अनबूझे  अक्षरों  पे  किस्म-किस्म  की  मात्रा !

चलो  दूरियों  से  एक  समझौता  करते  हैं -
सर्वप्रथम  मैं  को  मारते  हैं  फिर  हम  मरते  हैं !
समय  की  बलिष्ठ  भुजाओं के  आलिंगन  से  मुक्त 
इक दूजे  का  हाथ  थाम  चलने  की कोशिश  करते  है  !

प्रिय !  हम  अब  भी  जीते  हैं 
तब भी  जीयेगे ,
इक दूजे  की  साँसों  में  ही  हो  जायेगे  अमर 
जब  खुद  ही  खुद  की  दूरियों  को  पीयेगें !!
-------------------------- तनु थदानी

आज सुबह से ही परेशान हूँ मैं

आज  सुबह   से  ही  परेशान   हूँ  मैं ,
अपनी  अजन्मी  कविता में  बिंब को ले कर !

पुरानी  चप्पलों  को  बिंब   बनाया  नेताओं  का 
घूर  पड़ी  सारी  पुरानी   चप्पलें  घर  की -
क्या   तकलीफ   दी  हमने   आपके  पैरों  को  ??
बूढी  हैं , पुरानी  हैं , मगर  काटती  तो नहीं हैं आपको !

खोटे  सिक्कों  को  टटोला 
खनक  पड़ें 
बोले - मत  बनाना  हमें  बिंब   इन  नेताओं  का 
हमारा  यूँ  तो  कोई  मोल  नहीं 
मगर  वज़न  कर  के  बेचोगे  तो  इन  नेताओं  से  अधिक   ही पाओगे !

यहाँ  तक  की  रद्दी  अखबारों  ने   भी मना   किया  मुझे 
कहा- नाम  रद्दी  है  हमारा 
खबरदार ! जो नेताओं  से  तुलना  की,
हम  बिकते  जरुर  है  मगर  राष्ट्र -हित  में 
वापस  आतें  हैं  नए  रूप  में !

घर  के  कुत्ते  ने  मासूमियत  से  कहा -
हमने  तो   आपका नमक   खाया  है  मालिक 
नहीं  बनाना  बिंब   हमें  नेताओं  का   
हमने  कभी  कोई  नहीं  की  गद्दारी 
युगों  का   देख  लो  इतिहास
हमारी  वफादारी  में कभी  कोई   कमी नहीं  आई ,
अगर  हमारे  जैसे  भी  होते ये  नेता  
तो  घुस  नहीं  पाती  हमारे  घर  में  एफ  डी  आई !!

तुम तो धूप थी जाड़े की

तुम  तो   धूप   थी  जाड़े  की 
जिसको  मैंने  प्यार  से 
पकड़  रखा  था   अपनी दोनों  हथेलियों  के  बीच !

जो  हमसे  बड़े  थे 
सभी  हँसे  थे 
कि  धूप   तो  हथेलियों  में  भरी  नजर   आती  है
अंततः  फिसल   जाती  है !

नहीं  फिसली  धूप,
उम्र  की  गर्मियों  में 
भरी  दोपहरी जब
हथेलियों  में  भरी  धूप  ने 
जला  डाला  मुझे 
तब लगा 
नहीं  है   वो  मेरी धूप 
ये  तो   कोई  और  है 
फिर  कहाँ  गई  वो   मीठी  धूप ??

कोई  नहीं   रोया  की  धूप  की  मिठास   खो गई 
गौर  से  देखा  जली   हथेलियों  को 
जहां  धूप  से  चिपक  मेरी  मुस्कान  सो  गई !

सच  कहूँ 
धूप   को  हथेलियों  में  पकड़ना   ही गलत  था 
धूप   को  तो   आलिंगन  में  रखना  था 
तभी  वो  मेरी   हो पाती 
जिस  दिन  धूप   मेरी   हो  जाती 
जलती तो  मेरे  ही  भीतर 
पर  मुझे  न  जला  पाती !!

कल घूमते -घूमते

कल  घूमते -घूमते  शहर  के एक  घर  से  जब  बात हुई 
तो  उसके  बंद  दरवाजे  ने   कुछ  राज यूँ  खोले -
चारपाई  को  ड्राईंग -रूम  से   हटा कर 
पीछे  बरामदे   में  रखना 
उतना   नहीं  था  दुखद  उसके  लिए 
जितना   दुखद  था   बाबूजी  का  अब उस  चारपाई  पर 
बरामदे  में  सोना !

सुविधानुसार  तर्क   भी बनाये  गये 
घरवालों  की तरफ  से 
कि 
ड्राईंग - रूम  के  हो-हल्ले  से  उन्हें    निजात मिली 
वहीँ  बरामदे  में  सटे  बाथरूम  होने  से 
उनकी दिनचर्या  में  सरलता  आयी !

फिर  उस  दरवाजे  ने 
मेरे कान  में   धीमे  से  बताया -
बेटा   बुरा  नहीं  है  इतना
वो तो  बाबूजी  ने   खुद  प्रस्ताव  रखा था 
नए  सोफे  की  जगह  बनाने  हेतु !

बाजू  वाले  दरवाजे  के   बारे में  बताया 
उसके   अन्दर  कमरे  तो  हैं 
मगर  नहीं  है  बरामदा ,
सो  उनके  बाबूजी आश्रम  में  रहतें  हैं !

बेटा  उनका भी  नहीं  है  बुरा 
कितना  ख्याल रखता  है  -
हर महीने  मिलने  जाता  है,
मिलने   वालों को   बताता  है -
घर  पे तो   कितने  अकेले  थे  बाबूजी 
वहाँ  तो  हमउम्र  की अच्छी  कंपनी  मिल गई ! 

मगर   अभी तक  यकीन  नहीं  आया  
कि  उस  बंद  दरवाजे   ने   मुझे  ये सब  बताया ...
हे  ईश्वर !  क्या  मेरे  बालों  में   आती  सफेदी  देख  ली  उसने ??